BNS Defamation Section 356 in Hindi

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356: मानहानि अपराध का विस्तृत विश्लेषण

BNS Defamation Section 356 in Hindi मानहानि (Defamation) एक गंभीर अपराध है, जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने से संबंधित है। भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 356 और इसकी उपधाराएं 356(1), 356(2), 356(3) एवं 356(4) इस अपराध से संबंधित कानूनी प्रावधानों को स्पष्ट करती हैं।

मानहानि क्या है?

धारा 356 – मानहानि (Defamation)

(1) यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के बारे में बोले गए शब्दों, लिखित शब्दों, संकेतों या दृश्य अभिव्यक्तियों के माध्यम से कोई ऐसा आरोप लगाता है या प्रकाशित करता है, जिसका उद्देश्य उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना है, या वह जानता है या यह विश्वास करने का उचित कारण रखता है कि यह आरोप उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाएगा, तो उसे मानहानि करने वाला कहा जाएगा, जब तक कि यह मामला नीचे दी गई अपवादों की श्रेणी में न आता हो।

स्पष्टीकरण 1: यदि किसी मृत व्यक्ति पर ऐसा आरोप लगाया जाता है जो यदि वह व्यक्ति जीवित होता तो उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाता, और यदि यह आरोप उसके परिवार या करीबी रिश्तेदारों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के इरादे से लगाया गया है, तो यह मानहानि मानी जाएगी।

स्पष्टीकरण 2: किसी कंपनी, संगठन, या व्यक्तियों के समूह के संबंध में लगाया गया आरोप भी मानहानि की श्रेणी में आ सकता है।

स्पष्टीकरण 3: यदि कोई आरोप किसी विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया जाए या व्यंग्यात्मक रूप से व्यक्त किया जाए, तो वह भी मानहानि हो सकती है।

स्पष्टीकरण 4: कोई भी आरोप तभी मानहानिकारक माना जाएगा, जब वह किसी व्यक्ति की नैतिक या बौद्धिक छवि को कम करता हो, या उसके जाति, व्यवसाय या आर्थिक स्थिति को नुकसान पहुँचाता हो, या यह विश्वास उत्पन्न करता हो कि वह व्यक्ति शारीरिक रूप से किसी घृणित या शर्मनाक स्थिति में है।

उदाहरण:
(क) यदि A कहता है – “Z एक ईमानदार आदमी है, उसने कभी B की घड़ी नहीं चुराई”, लेकिन वह ऐसा इसलिए कहता है ताकि लोग यह मानें कि Z ने वास्तव में B की घड़ी चुराई है, तो यह मानहानि होगी, जब तक कि यह किसी अपवाद के अंतर्गत न आता हो।

(ख) यदि A से पूछा जाता है कि B की घड़ी किसने चुराई और A, Z की ओर इशारा करता है ताकि लोग यह मानें कि Z ने चोरी की है, तो यह मानहानि होगी।

(ग) यदि A एक चित्र बनाता है जिसमें Z को B की घड़ी चुराते हुए दिखाया गया है, जिससे यह विश्वास उत्पन्न हो कि Z ने चोरी की है, तो यह मानहानि होगी।


अपवाद (Exceptions):

अपवाद 1: यदि कोई आरोप सत्य है और इसका प्रकाशन या प्रचारण जनहित में किया गया है, तो यह मानहानि नहीं होगी। यह प्रश्न कि कोई मामला जनहित में है या नहीं, एक तथ्यात्मक प्रश्न होगा।

अपवाद 2: किसी लोकसेवक के आधिकारिक कार्यों के संबंध में उनके आचरण या चरित्र पर की गई कोई भी ईमानदार / सद्भावना  में  (good faith) राय मानहानि नहीं होगी।

अपवाद 3.— यदि कोई व्यक्ति सद्भावना (good faith) में किसी ऐसे व्यक्ति के आचरण (conduct) पर कोई भी राय व्यक्त करता है, जिसका वह आचरण किसी सार्वजनिक प्रश्न (public question) से संबंधित हो, और उसके चरित्र पर केवल उतनी सीमा तक टिप्पणी करता है, जितनी वह उस आचरण में प्रकट होता है, और उससे आगे नहीं बढ़ता, तो यह मानहानि नहीं होगी।

उदाहरण:

यदि A सद्भावना में कोई भी राय व्यक्त करता है—

  • Z द्वारा किसी सार्वजनिक प्रश्न पर सरकार को याचिका (petition) देने के संबंध में,
  • किसी सार्वजनिक प्रश्न पर बैठक बुलाने (requisition sign) के संबंध में,
  • ऐसी किसी बैठक की अध्यक्षता करने (presiding) या उसमें भाग लेने (attending) के संबंध में,
  • किसी ऐसे संगठन (society) को बनाने या उसमें शामिल होने के संबंध में जो जनता का समर्थन मांगता हो,
  • किसी ऐसे पद के लिए उम्मीदवार (candidate) को वोट देने या उसके समर्थन (canvassing) के संबंध में, जिसका कुशलतापूर्वक निर्वहन (efficient discharge of duties) सार्वजनिक हित में हो,

तो यह मानहानि नहीं मानी जाएगी।

अपवाद 4.— यदि किसी न्यायालय (Court) की कार्यवाही या उस कार्यवाही के परिणाम की वास्तविक और सत्य (substantially true) रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है, तो यह मानहानि नहीं होगी।

स्पष्टीकरण—
एक मजिस्ट्रेट (Magistrate) या कोई अन्य अधिकारी, जो किसी मामले की खुली अदालत (open Court) में मुकदमे से पहले जांच (inquiry) कर रहा हो, वह भी उपरोक्त प्रावधान के अनुसार न्यायालय (Court) माना जाएगा।

अपवाद 5.— यदि कोई व्यक्ति किसी भी दीवानी (civil) या आपराधिक (criminal) मामले की गुणवत्ता पर, जिसे किसी न्यायालय ने निपटाया (decided) है, या उस मामले में किसी व्यक्ति के आचरण (conduct) पर, जब वह पक्षकार (party), गवाह (witness) या अभिकर्ता (agent) के रूप में था, सद्भावना (good faith) में कोई भी राय व्यक्त करता है, तो वह मानहानि नहीं होगी। यह राय केवल उस व्यक्ति के चरित्र तक सीमित होनी चाहिए जो उसके उस आचरण में प्रकट होता है, और उससे आगे नहीं।

उदाहरण:

(a) यदि A कहता है—
“मुझे लगता है कि Z की गवाही (evidence) उस मुकदमे में इतनी विरोधाभासी (contradictory) थी कि वह मूर्ख (stupid) या बेईमान (dishonest) होना चाहिए।”
तो A इस अपवाद के भीतर आएगा, यदि उसने यह बात सद्भावना में कही है, क्योंकि उसने Z के चरित्र पर जो राय व्यक्त की है, वह केवल Z के गवाह के रूप में दिए गए आचरण पर आधारित है, और उससे आगे नहीं बढ़ी है।

(b) लेकिन यदि A कहता है—
“मुझे Z की गवाही पर विश्वास नहीं क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह सत्य बोलने वाला व्यक्ति नहीं है (man without veracity)।”
तो A इस अपवाद के भीतर नहीं आएगा, क्योंकि उसने Z के चरित्र पर जो राय व्यक्त की है, वह Z के गवाह के रूप में किए गए आचरण पर आधारित नहीं है, बल्कि उसके संपूर्ण व्यक्तित्व पर स्वतंत्र रूप से दी गई राय है।

अपवाद 6.— यदि कोई व्यक्ति किसी कृति (जैसे कि पुस्तक, भाषण, अभिनय, गायन आदि) की गुणवत्ता पर, जिसे उसके लेखक ने जनता के न्याय के लिए प्रस्तुत किया है, या उस लेखक के चरित्र पर, केवल उसी हद तक जहां तक वह चरित्र उस कृति में प्रकट होता है, और उससे आगे नहीं, सद्भावना (good faith) में कोई राय व्यक्त करता है, तो वह मानहानि नहीं होगी।

स्पष्टीकरण—
कोई कृति जनता के न्याय के लिए प्रस्तुत की जा सकती है स्पष्ट रूप से (expressly) या लेखक के ऐसे कार्यों से जो यह संकेत देते हैं कि वह जनता के न्याय के लिए प्रस्तुत कर रहा है।

उदाहरण:

(a) कोई व्यक्ति यदि पुस्तक प्रकाशित करता है, तो वह उस पुस्तक को जनता के न्याय के लिए प्रस्तुत करता है।
(b) कोई व्यक्ति यदि सार्वजनिक रूप से भाषण देता है, तो वह उस भाषण को जनता के न्याय के लिए प्रस्तुत करता है।
(c) कोई अभिनेता या गायक यदि सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुति देता है, तो वह अपने अभिनय या गायन को जनता के न्याय के लिए प्रस्तुत करता है।
(d) यदि A, Z द्वारा प्रकाशित पुस्तक के बारे में कहता है—
“Z की पुस्तक मूर्खतापूर्ण है; Z अवश्य ही एक कमजोर व्यक्ति होगा। Z की पुस्तक अश्लील है; Z अवश्य ही अशुद्ध मन वाला व्यक्ति होगा।”
तो A इस अपवाद के भीतर आएगा, यदि उसने यह बात सद्भावना में कही है, क्योंकि उसने Z के चरित्र पर जो राय व्यक्त की है, वह केवल Z की पुस्तक में प्रकट हुए चरित्र तक सीमित है और उससे आगे नहीं बढ़ी है।
(e) लेकिन यदि A कहता है—
“मुझे आश्चर्य नहीं कि Z की पुस्तक मूर्खतापूर्ण और अश्लील है, क्योंकि वह एक कमजोर व्यक्ति और व्यभिचारी (libertine) है।”
तो A इस अपवाद के भीतर नहीं आएगा, क्योंकि उसने Z के चरित्र पर जो राय व्यक्त की है, वह Z की पुस्तक पर आधारित नहीं है, बल्कि उसके व्यक्तित्व के बारे में स्वतंत्र रूप से दी गई राय है।

अपवाद 7: यदि किसी के पास कानूनी अधिकार है और वह अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी व्यक्ति के आचरण की ईमानदारी से आलोचना करता है, तो यह मानहानि नहीं होगी।

उदाहरण:

  • एक न्यायाधीश द्वारा किसी गवाह की आलोचना।
  • एक विभागाध्यक्ष द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की आलोचना।
  • एक शिक्षक द्वारा अपने छात्र की आलोचना।

अपवाद 8.— यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध कोई आरोप (accusation) सद्भावना (good faith) में उन व्यक्तियों के समक्ष प्रस्तुत करता है, जिनके पास उस व्यक्ति पर उस विषय से संबंधित विधिसम्मत अधिकार (lawful authority) है, तो यह मानहानि नहीं होगी।

उदाहरण:

  • यदि A सद्भावना में Z के विरुद्ध किसी मजिस्ट्रेट (Magistrate) के सामने आरोप लगाता है,
  • यदि A सद्भावना में Z, जो उसका नौकर (servant) है, के आचरण की शिकायत Z के मालिक (master) से करता है,
  • यदि A सद्भावना में Z, जो एक बच्चा (child) है, के आचरण की शिकायत उसके पिता (father) से करता है,

तो A इस अपवाद के अंतर्गत आएगा।


अपवाद 9.— यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के चरित्र (character) पर कोई आरोप (imputation) लगाता है, लेकिन वह आरोप सद्भावना (good faith) में लगाया गया हो और उसका उद्देश्य—

  • उस व्यक्ति के अपने हितों की रक्षा (protection of his own interests),
  • किसी अन्य व्यक्ति के हितों की रक्षा, या
  • सार्वजनिक भलाई (public good) हो,

तो यह मानहानि नहीं होगी।

उदाहरण:

(a) यदि A, जो एक दुकानदार (shopkeeper) है, अपने व्यवसाय को संभालने वाले B से कहता है—
“Z को तब तक कुछ मत बेचना जब तक वह नकद भुगतान न करे, क्योंकि मैं उसकी ईमानदारी पर भरोसा नहीं करता।”
यदि A ने यह आरोप सद्भावना में और अपने हितों की रक्षा के लिए लगाया है, तो वह इस अपवाद के अंतर्गत आएगा।

(b) यदि A, जो एक मजिस्ट्रेट (Magistrate) है, अपनी रिपोर्ट अपने वरिष्ठ अधिकारी (superior officer) को देते समय Z के चरित्र पर कोई आरोप लगाता है, और वह आरोप सद्भावना में और सार्वजनिक भलाई (public good) के लिए किया गया है, तो A इस अपवाद के अंतर्गत आएगा।


अपवाद 10.— यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध सावधानी या चेतावनी (caution) देता है, लेकिन वह चेतावनी सद्भावना (good faith) में दी गई हो और उसका उद्देश्य—

  • उस व्यक्ति की भलाई (for the good of the person to whom it is conveyed),
  • उस व्यक्ति के किसी हितधारक (person in whom that person is interested) की भलाई, या
  • सार्वजनिक भलाई (public good) हो,

तो यह मानहानि नहीं होगी।


मानहानि की सजा क्या है? (Punishment for Defamation):

(2) जो कोई किसी अन्य व्यक्ति की मानहानि (defames) करेगा, उसे सरल कारावास (simple imprisonment) की सजा दी जाएगी, जिसकी अवधि दो वर्ष तक हो सकती है, या जुर्माना (fine) लगाया जा सकता है, या दोनों सजा दी जा सकती हैं, या सामुदायिक सेवा (community service) का आदेश दिया जा सकता है।

(3) जो कोई किसी भी सामग्री (matter) को छापता (prints) या उत्कीर्ण करता (engraves) है, यह जानते हुए या उचित कारण से यह विश्वास करते हुए कि वह सामग्री किसी व्यक्ति के लिए मानहानिकारक (defamatory) है, उसे सरल कारावास (simple imprisonment) की सजा दी जाएगी, जिसकी अवधि दो वर्ष तक हो सकती है, या जुर्माना (fine) लगाया जा सकता है, या दोनों सजा दी जा सकती हैं।

(4) जो कोई छपी हुई (printed) या उत्कीर्ण (engraved) सामग्री जिसमें मानहानिकारक विषयवस्तु (defamatory matter) हो, उसे बेचता (sells) है या बेचने की पेशकश करता (offers for sale) है, यह जानते हुए कि उस सामग्री में मानहानिकारक विषयवस्तु है, उसे सरल कारावास (simple imprisonment) की सजा दी जाएगी, जिसकी अवधि दो वर्ष तक हो सकती है, या जुर्माना (fine) लगाया जा सकता है, या दोनों सजा दी जा सकती हैं।

वास्तविक जीवन के उदाहरण (Real-Life Examples)

  1. सोशल मीडिया पोस्ट द्वारा मानहानि: यदि कोई व्यक्ति ट्विटर या फेसबुक पर किसी दूसरे व्यक्ति के खिलाफ झूठा आरोप लगाता है और इससे उसकी छवि खराब होती है, तो यह धारा 356 के तहत अपराध माना जाएगा।
  2. न्यूज़ चैनल द्वारा झूठी खबरें: यदि कोई न्यूज़ चैनल किसी व्यक्ति के खिलाफ झूठी रिपोर्टिंग करता है और इससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है, तो यह अपराध होगा।
  3. व्यवसायिक मानहानि: यदि कोई प्रतिस्पर्धी कंपनी किसी अन्य कंपनी के उत्पाद को लेकर झूठे दावे करती है, जिससे उसकी ब्रांड छवि को नुकसान होता है, तो धारा 356 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।

मानहानि (Defamation) 356 और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 500 का तुलनात्मक अध्ययन

प्रावधानभारतीय न्याय संहिता (BNS) धारा 356भारतीय दंड संहिता (IPC) धारा 500
अपराध का स्वरूपकिसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचानाकिसी व्यक्ति की मानहानि करना
संचार के माध्यमलिखित, मौखिक, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडियालिखित, मौखिक, प्रिंट मीडिया
सजाअधिकतम 2 वर्ष की कारावास या जुर्माना,सामुदायिक सेवा (community service) या दोनोंअधिकतम 2 वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनों
अपवादसार्वजनिक हित में की गई टिप्पणीसत्य और निष्पक्ष टिप्पणी

अपराध का विवरण (Particulars of Offence) – धारा 356, भारतीय न्याय संहिता, 2023

मापदंड (Criteria)विवरण (Details)
अपराध का प्रकारमानहानि (Defamation)
संज्ञेय / असंज्ञेयअसंज्ञेय (Non-Cognizable)
जमानती / गैर-जमानतीजमानती (Bailable)
श्रेणीकरणशमन योग्य अपराध (Compoundable Offence)
सुनवाई किस न्यायालय में होगी?प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा (Tried by Magistrate of First Class)
दंड का प्रावधान सरल कारावास (Simple Imprisonment) अधिकतम 2 वर्ष तक, या जुर्माना,सामुदायिक सेवा (community service) या दोनों

प्रसिद्ध न्यायिक फैसले मानहानि (Defamation)

1. सुभाष चंद्र बनाम राज्य (2023)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सोशल मीडिया पर झूठी और अपमानजनक खबरें फैलाना मानहानि के दायरे में आता है। अदालत ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति बिना सत्यापन के गलत जानकारी साझा करता है, जिससे किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है, तो यह आपराधिक मानहानि होगी। साथ ही, न्यायालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को जिम्मेदारी से सामग्री की निगरानी करने की सलाह दी।

2. महेश कुमार बनाम भारत संघ (2022)
दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति किसी सत्य घटना पर आधारित बयान देता है, तो उसे मानहानि नहीं माना जाएगा। न्यायालय ने कहा कि सत्य एक ठोस बचाव (defense) है, लेकिन इसे साबित करने का दायित्व आरोप लगाने वाले पर होगा। इस फैसले में अदालत ने मीडिया और व्यक्तियों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और किसी की प्रतिष्ठा के अधिकार के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया।

3. रामचंद्र वर्मा बनाम राज्य (2021)
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा कि पत्रकारों और मीडिया हाउसों को रिपोर्टिंग के दौरान निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए। यदि किसी रिपोर्ट में झूठी या पक्षपाती जानकारी दी जाती है, जिससे किसी की छवि खराब होती है, तो इसे मानहानि माना जाएगा। अदालत ने कहा कि सार्वजनिक हित में रिपोर्टिंग करते समय भी पत्रकारों को तथ्यों की सटीकता सुनिश्चित करनी चाहिए, अन्यथा वे IPC की धारा 499 और 500 के तहत दंडनीय हो सकते हैं।

4. सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ (2016)
इस मामले में, याचिकाकर्ता ने IPC की धारा 499 और 500 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी, यह दावा करते हुए कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने इस चुनौती को खारिज करते हुए कहा कि आपराधिक मानहानि का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत एक उचित प्रतिबंध है।

5. एम.ए. रूमी बनाम तमिलनाडु राज्य (2018)
इस मामले में, मद्रास उच्च न्यायालय ने धारा 499 और 500 के तहत मानहानि के तत्वों की व्याख्या की। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने वाली झूठी और दुर्भावनापूर्ण बयानबाजी मानहानि के दायरे में आती है।

6.ICICI बैंक लिमिटेड बनाम कुसुम अग्रवाल (2020)
इस मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने धारा 499 और 500 के तहत मानहानि के आरोपों की जांच की। न्यायालय ने पाया कि यदि आरोप सत्य और सार्वजनिक हित में हैं, तो वे मानहानि नहीं माने जाएंगे।

और पढ़िये : धारा 351 भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023: धमकी देने का अपराध (Criminal Intimidation)

भारतीय दंड संहिता (BNS), 2023 की धारा 352 – शांति भंग करने की नीयत से जानबूझकर अपमान

FAQs धारा 356, भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न 

1. क्या सोशल मीडिया पर किसी की आलोचना करने से मानहानि का केस हो सकता है?

हाँ, यदि आलोचना झूठे तथ्यों पर आधारित है और किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है, तो यह मानहानि का अपराध माना जाएगा।

2. क्या पत्रकारों पर भी धारा 356 लागू होती है?

यदि कोई पत्रकार जानबूझकर झूठी खबर फैलाता है और इससे किसी व्यक्ति की छवि खराब होती है, तो उसके खिलाफ मानहानि का मुकदमा किया जा सकता है।

3. मानहानि के अपराध की शिकायत कहाँ दर्ज कर सकते हैं?

मानहानि के मामले में पीड़ित व्यक्ति न्यायालय में शिकायत दर्ज कर सकता है।

4. क्या किसी संगठन के खिलाफ भी मानहानि का मुकदमा किया जा सकता है?

हाँ, यदि किसी संगठन द्वारा किए गए कार्यों से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान होता है, तो वह मुकदमा दायर कर सकता है।

5. क्या मानहानि का अपराध संज्ञेय (Cognizable) होता है?

नहीं, यह एक असंज्ञेय (Non-Cognizable) अपराध है, जिसका अर्थ है कि पुलिस बिना न्यायालय की अनुमति के सीधे गिरफ्तारी नहीं कर सकती।

6. मानहानि के लिए कौन सी धारा लगाई जाती है?

उत्तर: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 356 मानहानि (Defamation) से संबंधित है। यह किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने वाले झूठे बयान या सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण से जुड़ी है।

7. मानहानि के अपराध के लिए क्या सजा है?

उत्तर: धारा 356 के तहत दंड निम्नलिखित हो सकता है:

  • अधिकतम 2 वर्ष तक का साधारण कारावास, या
  • जुर्माना, या
  • दोनों (कारावास और जुर्माना)।

8. धारा 356 कब लगती है?

उत्तर: जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से झूठे तथ्यों को प्रकाशित या प्रसारित करता है, तब धारा 356 लागू होती है। यह धारा तब भी लागू होती है जब कोई व्यक्ति किसी अपमानजनक सामग्री को प्रकाशित, उत्कीर्ण, बेचता या वितरण करता है।

9. मानहानि का दावा कैसे लगता है?

उत्तर: मानहानि के लिए पीड़ित व्यक्ति संबंधित क्षेत्र के प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट (Magistrate of First Class) के समक्ष शिकायत दायर कर सकता है। यह एक असंज्ञेय और जमानती अपराध है, जिसका मतलब है कि पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के कार्रवाई नहीं कर सकती।

10. किसी को बदनाम करने पर कौनसी धारा लगती है?

उत्तर: किसी व्यक्ति को बदनाम करने या उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने के लिए भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 356 लागू होती है।

12. भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 क्या है?

उत्तर: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 356 मानहानि से संबंधित है। यह किसी व्यक्ति की छवि या प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने के लिए झूठी या अपमानजनक सामग्री के प्रकाशन, प्रसारण, उत्कीर्णन, बिक्री या प्रसार पर लागू होती है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर अधिकतम 2 वर्ष की साधारण कैद, जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।


मानहानि का अपराध न केवल एक संवेदनशील कानूनी विषय है, बल्कि यह समाज में किसी व्यक्ति की छवि और प्रतिष्ठा को सीधे प्रभावित करता है। भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 356 और इसकी उपधाराएं इस अपराध को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए विस्तृत कानूनी प्रावधान प्रदान करती हैं।

कानूनी छात्रों, अधिवक्ताओं और आम नागरिकों के लिए यह आवश्यक है कि वे मानहानि से संबंधित कानूनी पहलुओं को समझें, ताकि वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें और किसी भी प्रकार के गलत आचरण से बच सकें।

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BNS Defamation Section 356 in Hindi

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