BNS Section 82 in Hindi I बीएनएस धारा 82: द्विविवाह –

BNS Section 82 in Hindi शादी एक ऐसा रिश्ता है जो हमारे समाज की नींव है, और इसे बनाए रखने के लिए कानून बनाए गए हैं. भारत में, हाल ही में लागू हुआ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023, जिसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह ली है, अब भी द्विविवाह को एक अपराध मानता है. द्विविवाह का मतलब है, जब कोई व्यक्ति अपनी पहली शादी के कानूनी तौर पर वैध रहते हुए दूसरी शादी कर लेता है. बीएनएस की धारा 82 खास तौर पर इसी अपराध के बारे में बताती है, जिसमें इसकी परिभाषा, सजा और कुछ खास छूटें शामिल हैं.
BNS Section 82
82. Marrying again during lifetime of husband or wife.
(1) Whoever, having a husband or wife living, marries in any case in which such marriage is void by reason of its taking place during the life of such husband or wife, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.
Exception.—
This sub-section does not extend to any person whose marriage with such husband or wife has been declared void by a Court of competent jurisdiction, nor to any person who contracts a marriage during the life of a former husband or wife, if such husband or wife, at the time of the subsequent marriage, shall have been continually absent from such person for the space of seven years, and shall not have been heard of by such person as being alive within that time provided the person contracting such subsequent marriage shall, before such marriage takes place, inform the person with whom such marriage is contracted of the real state of facts so far as the same are within his or her knowledge.
(2) Whoever commits the offence under sub-section (1) having concealed from the person with whom the subsequent marriage is contracted, the fact of the former marriage, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to ten years, and shall also be liable to fine
BNS Section 82 in Hindi
बीएनएस धारा 82 Bigamy or द्विविवाह क्या है? In simple words :
द्विविवाह का सीधा सा मतलब है कि जब कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा होते हुए भी दूसरे व्यक्ति से शादी कर लेता है. भारतीय न्याय संहिता की धारा 82 इस काम को अपराध मानती है.
बीएनएस की धारा 82 (1) कहती है:
“जो कोई भी, अपने पति या पत्नी के जीवित रहते हुए, किसी ऐसे मामले में शादी करता है जिसमें ऐसी शादी उसके पति या पत्नी के जीवनकाल के दौरान होने के कारण शून्य है, उसे किसी भी तरह के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात साल तक बढ़ाई जा सकती है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा.”
सरल शब्दों में कहें तो, अगर कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा है और उसका पति या पत्नी अभी जीवित है, और उसकी पहली शादी कानूनी तौर पर खत्म नहीं हुई है (तलाक या शादी रद्द होने से), और वह किसी दूसरे व्यक्ति से शादी कर लेता है, तो यह दूसरी शादी शून्य मानी जाएगी (यानी, शुरुआत से ही इसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं होगी). जो व्यक्ति यह शून्य दूसरी शादी करता है, वह द्विविवाह का अपराध करता है.
धारा 82 (1) के अपवाद: (Exception)
इस धारा मे कुछ अपवाद भी दिए गए है, जहाँ जीवित पति या पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी द्विविवाह नहीं मानी जाएगी:
- न्यायालय द्वारा शून्य घोषित विवाह: यदि पहली शादी को किसी सक्षम न्यायालय द्वारा पहले ही कानूनी तौर पर शून्य घोषित कर दिया गया है. इसका मतलब है कि अदालत ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि पहली शादी कानून की नज़र में कभी वैध नहीं थी.
- सात साल की अनुपस्थिति और कोई खबर नहीं: यदि पहला पति या पत्नी लगातार सात साल से व्यक्ति से दूर है, और इस दौरान उसके जीवित होने की कोई खबर नहीं मिली है. हालाँकि, एक महत्वपूर्ण शर्त है: दूसरी शादी करने वाला व्यक्ति ऐसी शादी होने से पहले, जिस व्यक्ति से वह शादी कर रहा है, उसे अपनी जानकारी के अनुसार वास्तविक तथ्यों की स्थिति के बारे में सूचित करेगा. यह पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और धोखे को रोकता है.
बीएनएस की धारा 82 (2): छिपाने का गंभीर अपराध
यह उप-धारा द्विविवाह के एक अधिक गंभीर रूप से संबंधित है, जहाँ धोखा शामिल होता है:
“जो कोई भी उप-धारा (1) के तहत अपराध करता है, और बाद में की गई शादी में जिससे शादी की गई है, उससे पिछली शादी के तथ्य को छुपाता है, उसे किसी भी तरह के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि दस साल तक बढ़ाई जा सकती है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा.”
इसका मतलब है कि यदि द्विविवाह करने के अलावा, अपराधी जानबूझकर अपनी पहली शादी के तथ्य को उस व्यक्ति से छुपाता है जिससे वह दूसरी शादी कर रहा है, तो उसे कड़ी सजा मिलेगी. यह प्रावधान विशेष रूप से दूसरे पति या पत्नी की रक्षा के लिए है, जो अक्सर ऐसे धोखे का मासूम शिकार होते हैं.
BNS Section 82 द्विविवाह के अपराध के लिए सजा: (Punishment)
बीएनएस द्विविवाह के काम की प्रकृति के आधार पर अलग-अलग सजाएँ निर्धारित करता है:
- बीएनएस की धारा 82 (1) के तहत (सामान्य द्विविवाह): किसी भी तरह के कारावास (सश्रम या साधारण) से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात साल तक बढ़ाई जा सकती है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा.
- बीएनएस की धारा 82 (2) के तहत (छिपाने के साथ द्विविवाह): किसी भी तरह के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि दस साल तक बढ़ाई जा सकती है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा.
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) से तुलना : (Comparison)
बीएनएस की धारा 82 सीधे तौर पर भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 494 और 495 की जगह लेती है.
- आईपीसी की धारा 494 “पति या पत्नी के जीवनकाल के दौरान दोबारा शादी करना” से संबंधित थी और इसमें सात साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान था, जो बीएनएस की धारा 82 (1) के समान है.
- आईपीसी की धारा 495 “पिछली शादी के तथ्य को उस व्यक्ति से छुपाकर वही अपराध करना जिससे बाद में शादी की गई है” से संबंधित थी और इसमें दस साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान था, जो बीएनएस की धारा 82 (2) के समान है.
संक्षेप में, भारतीय न्याय संहिता ने द्विविवाह से संबंधित प्रावधानों को आईपीसी से लगभग हूबहू अपनाया है, जिसमें वही परिभाषाएँ, छूटें और सजा की संरचनाएँ बरकरार रखी गई हैं. यह बदलाव मुख्य रूप से नए आपराधिक कानूनों के तहत पुनर्संख्याकरण और समेकन में है. यह निरंतरता सुनिश्चित करती है कि आईपीसी के तहत स्थापित कानूनी व्याख्याएँ और मिसालें बीएनएस की धारा 82 के लिए भी काफी हद तक प्रासंगिक रहेंगी.
बिंदु | बीएनएस (BNS) धारा 82 | आईपीसी (IPC) धारा 494 व 495 |
कानून का नाम | भारतीय न्याय संहिता, 2023 | भारतीय दंड संहिता, 1860 |
धारा संख्या | धारा 82 | धारा 494 (सामान्य द्विविवाह)धारा 495 (छिपाकर द्विविवाह) |
अपराध का नाम | द्विविवाह (Bigamy) | द्विविवाह (Bigamy) |
अपराध की परिभाषा | जीवित पति/पत्नी के रहते दूसरी शादी करना | जीवित पति/पत्नी के रहते दूसरी शादी करना |
दूसरी शादी की वैधता | ऐसी शादी शून्य (Void) मानी जाती है | ऐसी शादी शून्य (Void) मानी जाती है |
सामान्य सजा | 7 साल तक का कारावास और जुर्माना (धारा 82(1)) | 7 साल तक का कारावास और जुर्माना (धारा 494) |
छिपाकर शादी की सजा | 10 साल तक का कारावास और जुर्माना (धारा 82(2)) | 10 साल तक का कारावास और जुर्माना (धारा 495) |
अपवाद (Exceptions) | 1. पहली शादी को न्यायालय द्वारा शून्य घोषित किया गया हो2. पहला पति/पत्नी 7 वर्षों से अनुपस्थित हो और जीवित होने की कोई खबर न हो (बशर्ते तथ्य बताए जाएँ) | वही दो अपवाद, जिनका वर्णन केस लॉ द्वारा किया गया है |
न्यायालय की शक्ति | प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट | प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट |
जमानती/गैर-जमानती | गैर-जमानती | गैर-जमानती |
संशोधन या अंतर | पुनर्संख्या (Renumbering) और भाषा में आधुनिकता | पुरानी भाषा और धारा संख्या |
संक्षेप में अंतर | धारा 82 में धारा 494 और 495 को एक साथ समाहित किया गया है तथा भाषा को अधिक स्पष्ट व सरल बनाया गया है | धारा 494 और 495 दो अलग-अलग धाराएँ थीं |
BNS Section 82 अपराध की तत्व : (ingredients)
बीएनएस की धारा 82 के तहत द्विविवाह के अपराध को साबित करने के लिए, अभियोजन पक्ष को निम्नलिखित आवश्यक तत्वों को साबित करना होगा:
- एक वैध पहली शादी का अस्तित्व: एक कानूनी रूप से वैध और मौजूदा पहली शादी होनी चाहिए. इसका मतलब है कि शादी संबंधित व्यक्तिगत कानूनों (जैसे हिंदू विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम, आदि) के अनुसार संपन्न हुई होनी चाहिए और तलाक या किसी सक्षम न्यायालय द्वारा रद्द नहीं की गई होनी चाहिए.
- पति या पत्नी का जीवित होना: दूसरी शादी के समय, पहली शादी का पति या पत्नी जीवित होना चाहिए.
- दूसरी शादी करना: आरोपी ने दूसरी शादी की होनी चाहिए. यह दूसरी शादी भी समारोहों और अनुष्ठानों के संदर्भ में एक वैध शादी होनी चाहिए, भले ही पहली शादी के अस्तित्व के कारण यह कानूनी रूप से शून्य हो. केवल सहवास या लिव-इन रिलेशनशिप “शादी” नहीं मानी जाएगी.
- दूसरी शादी का शून्य होना: दूसरी शादी पहली पति या पत्नी के जीवनकाल के दौरान होने के कारण शून्य होनी चाहिए.
- छूटों का अभाव: यह कार्य धारा 82 (1) में उल्लिखित दो छूटों में से किसी के तहत नहीं आना चाहिए – यानी, पहली शादी को अदालत द्वारा शून्य घोषित नहीं किया गया था, और पहला पति या पत्नी सात साल से लगातार अनुपस्थित नहीं रहा था और उसके जीवित होने की खबर नहीं मिली थी (या यदि ऐसा था, तो दूसरे पति या पत्नी को यह तथ्य नहीं बताया गया था).
- छिपाना (धारा 82(2) के लिए): धारा 82 (2) के तहत गंभीर अपराध के लिए, यह साबित करना होगा कि आरोपी ने जानबूझकर पिछली शादी के तथ्य को उस व्यक्ति से छुपाया जिससे बाद में शादी की गई थी.
बीएनएस की धारा 82 वास्तविक जीवन के उदाहरण ( Real life examples)
धारा 82 के अपराध को समझने के लिए, आइए कुछ वास्तविक जीवन के उदाहरण देखते हैं:
उदाहरण 1: सामान्य द्विविवाह (बीएनएस धारा 82(1))
- परिदृश्य: रवि और प्रिया की शादी हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई है और उनकी शादी कानूनी तौर पर वैध है. कुछ समय बाद, रवि प्रिया को तलाक दिए बिना, अंजलि नाम की एक दूसरी महिला से शादी कर लेता है. अंजलि को रवि की पहली शादी के बारे में पता है, लेकिन फिर भी वह उससे शादी करने के लिए सहमत हो जाती है.
- अपराध: इस मामले में, रवि ने द्विविवाह का अपराध किया है क्योंकि उसकी पहली पत्नी प्रिया अभी जीवित है और उनकी शादी कानूनी तौर पर खत्म नहीं हुई है. रवि और अंजलि की दूसरी शादी कानूनी तौर पर शून्य मानी जाएगी.
- परिणाम: रवि को बीएनएस की धारा 82 (1) के तहत सात साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है. चूंकि अंजलि को पहली शादी के बारे में पता था, इसलिए उस पर द्विविवाह के लिए उकसाने का आरोप लग सकता है.
उदाहरण 2: छिपाने के साथ द्विविवाह (बीएनएस धारा 82(2))
- परिदृश्य: सुनीता की शादी राजेश से हुई है. सुनीता राजेश से तलाक लिए बिना, अमित नाम के एक व्यक्ति से मिलती है. वह अमित को अपनी पहली शादी के बारे में कुछ नहीं बताती और उससे यह तथ्य छुपाकर शादी कर लेती है कि वह पहले से ही शादीशुदा है. अमित को सुनीता की पहली शादी के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
- अपराध: यहाँ, सुनीता ने द्विविवाह का अपराध किया है, और यह एक अधिक गंभीर अपराध है क्योंकि उसने अपनी पिछली शादी के तथ्य को अमित से छुपाया है. अमित इस धोखे का मासूम शिकार है.
- परिणाम: सुनीता को बीएनएस की धारा 82 (2) के तहत दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है, क्योंकि उसने अपनी पहली शादी को छुपाया था. अमित, चूंकि वह अनजान था, उसे पीड़ित माना जाएगा और उस पर कोई आरोप नहीं लगेगा.
ये उदाहरण दिखाते हैं कि बीएनएस की धारा 82 कैसे काम करती है और द्विविवाह के अलग-अलग मामलों में क्या सजा हो सकती है.
(BNS) की धारा 82 में जमानत के प्रावधान :
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 82 में जमानत के प्रावधानों को समझना बहुत ज़रूरी है. यह अपराध की प्रकृति पर निर्भर करता है कि जमानत मिलेगी या नहीं.
- धारा 82 (1) के तहत किया गया अपराध (सामान्य द्विविवाह):
- यह जमानती (Bailable) अपराध है.
- इसका मतलब यह है कि यदि किसी व्यक्ति पर इस उप-धारा के तहत द्विविवाह का आरोप लगता है, तो उसे जमानत पर रिहा होने का अधिकार है. पुलिस या न्यायालय के समक्ष निर्धारित शर्तों (जैसे जमानत राशि जमा करना) को पूरा करने पर उसे रिहा किया जा सकता है.
- यह अपराध समझौता योग्य (Compoundable) भी है, लेकिन अदालत की अनुमति से. इसका अर्थ है कि पीड़ित पक्ष (आमतौर पर पहला पति या पत्नी) अदालत की अनुमति से आरोपी के साथ समझौता करके मामले को खत्म कर सकता है.
- धारा 82 (2) के तहत किया गया अपराध (छिपाने के साथ द्विविवाह):
- यह गैर-जमानती (Non-Bailable) अपराध है.
- इसका मतलब यह है कि इस उप-धारा के तहत आरोपित व्यक्ति को जमानत का अधिकार नहीं होता है. जमानत देना या न देना पूरी तरह से अदालत के विवेक पर निर्भर करता है. अदालत मामले की गंभीरता, सबूतों और आरोपी के आपराधिक इतिहास को ध्यान में रखकर जमानत पर फैसला लेती है.
- यह अपराध गैर-समझौता योग्य (Non-Compoundable) है. इसका मतलब है कि इस मामले में पीड़ित पक्ष और आरोपी के बीच आपसी समझौता नहीं हो सकता और मामले को कानूनी प्रक्रिया के तहत ही आगे बढ़ाना होगा.
BNS Section 82 संबंधित प्रसिद्ध केस लॉ : (Case laws )
हालांकि बीएनएस नया है, द्विविवाह को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत आईपीसी की धारा 494/495 के अनुरूप हैं. इसलिए, आईपीसी के तहत दिए गए ऐतिहासिक फैसले बीएनएस की धारा 82 की व्याख्या के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करते रहेंगे.
- सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995 AIR 1531 SC): सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले में पहली शादी को भंग किए बिना दूसरी शादी करने के एकमात्र उद्देश्य से इस्लाम में धर्मांतरण के मुद्दे पर विचार किया गया था. न्यायालय ने फैसला सुनाया कि हिंदू कानून के तहत शादीशुदा एक हिंदू पति, अपनी पहली शादी को भंग किए बिना इस्लाम में धर्मांतरण करके दूसरी शादी नहीं कर सकता. ऐसी दूसरी शादी शून्य होगी और पति आईपीसी की धारा 494 (अब बीएनएस की धारा 82) के तहत द्विविवाह के लिए उत्तरदायी होगा. इस मामले ने इस सिद्धांत पर जोर दिया कि व्यक्तिगत कानूनों को द्विविवाह करने के लिए धार्मिक धर्मांतरण द्वारा दरकिनार नहीं किया जा सकता है.
- कंवर राम और अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश प्रशासन (AIR 1966 SC 614): सुप्रीम कोर्ट के इस मामले ने द्विविवाह के लिए दोषी ठहराने के लिए दोनों विवाहों की वैधता साबित करने के महत्व पर जोर दिया. न्यायालय ने फैसला सुनाया कि आरोपी द्वारा दूसरी शादी करने की केवल स्वीकारोक्ति अपर्याप्त है. अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि दोनों विवाहों के लिए संबंधित व्यक्तिगत कानून द्वारा आवश्यक आवश्यक समारोह और अनुष्ठान विधिवत किए गए थे. यदि कोई भी विवाह वैध विवाह के मानदंडों को पूरा करने में विफल रहता है, तो द्विविवाह का अपराध नहीं माना जा सकता है.
- एस. नागालिंगम बनाम शिवगामी (AIR 2001 SC 3576): कंवर राम के सिद्धांतों को दोहराते हुए, इस मामले ने द्विविवाह के लिए दोषी ठहराने के लिए दोनों विवाहों की वैधता, जिसमें आवश्यक समारोहों का प्रदर्शन भी शामिल है, को उचित संदेह से परे साबित करने पर और जोर दिया.
ये मामले इस बात पर जोर देते हैं कि द्विविवाह केवल दो पति या पत्नी होने के बारे में नहीं है, बल्कि एक वैध पहली शादी के रहते हुए दूसरी वैध शादी करने के बारे में है.
Read More: Can a Second Wife Get Maintenance?
BNS Section 82 द्विविवाह के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्र1: द्विविवाह के उद्देश्य से “वैध” पहली शादी क्या होती है?
उ1: एक “वैध” पहली शादी वह होती है जो पक्षों पर लागू व्यक्तिगत कानूनों (जैसे हिंदू विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम, आदि) के अनुसार संपन्न हुई हो और जिसे तलाक या किसी सक्षम न्यायालय द्वारा रद्द करके कानूनी रूप से भंग न किया गया हो.
प्र2: क्या दोनों पति-पत्नी पर द्विविवाह का मुकदमा चलाया जा सकता है?
उ2: आम तौर पर, केवल वही व्यक्ति जिस का एक जीवित पति या पत्नी है और जो दूसरी शादी करता है, उस पर द्विविवाह का मुकदमा चलाया जाता है. दूसरा पति या पत्नी, यदि पहली शादी से अनजान है, तो उसे आमतौर पर शिकार माना जाता है न कि अपराधी. हालाँकि, यदि दूसरा पति या पत्नी मौजूदा शादी के बारे में जानता था और आपराधिक इरादे से द्विविवाह में सक्रिय रूप से शामिल था, तो उस पर द्विविवाह के लिए उकसाने का आरोप लगाया जा सकता है.
प्र3: द्विविवाह के मामलों में व्यक्तिगत कानूनों (हिंदू विवाह अधिनियम, मुस्लिम पर्सनल लॉ, आदि) की क्या भूमिका है?
उ3: जबकि बीएनएस की धारा 82 द्विविवाह के लिए आपराधिक सजा का प्रावधान करती है, विवाहों की वैधता (और इस प्रकार द्विविवाह हुआ है या नहीं) संबंधित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा निर्धारित की जाती है. उदाहरण के लिए, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के लिए द्विविवाह को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करता है, ऐसे विवाहों को शून्य और आपराधिक कानून के तहत दंडनीय घोषित करता है. शरिया पर आधारित मुस्लिम पर्सनल लॉ, एक मुस्लिम पुरुष को एक साथ चार पत्नियों तक रखने की अनुमति देता है, बशर्ते वह उनके साथ समान व्यवहार करे. इसलिए, बीएनएस के तहत द्विविवाह कानून आम तौर पर उन व्यक्तियों पर लागू होते हैं जो व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित होते हैं जो एकविवाह को अनिवार्य करते हैं.
प्र4: क्या द्विविवाह एक संज्ञेय या गैर-संज्ञेय अपराध है? जमानती या गैर-जमानती? समझौता योग्य (Compoundable)?
उ4:
- संज्ञेय/गैर-संज्ञेय: बीएनएस की धारा 82 के तहत द्विविवाह आम तौर पर एक गैर-संज्ञेय अपराध है. इसका मतलब है कि पुलिस मजिस्ट्रेट के वारंट के बिना आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती है.
- जमानती/गैर-जमानती: धारा 82 (1) के तहत अपराध जमानती है, जिसका अर्थ है कि आरोपी को जमानत पर रिहा होने का अधिकार है. हालाँकि, धारा 82 (2) के तहत अपराध (छिपाने के साथ) गैर-जमानती है, जिसका अर्थ है कि जमानत अधिकार का मामला नहीं है और यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है.
- समझौता योग्य (Compoundable): धारा 82 (1) के तहत अपराध अदालत की अनुमति से समझौता योग्य है (जिसका अर्थ है कि पीड़ित पक्ष आरोपों को वापस लेने के लिए सहमत हो सकता है). धारा 82 (2) के तहत अपराध गैर-समझौता योग्य है, जिसका अर्थ है कि इसे अदालत के बाहर नहीं निपटाया जा सकता है और इसे कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से आगे बढ़ना होगा.
प्र5: क्या होगा यदि दूसरा पति या पत्नी पहली शादी से अनजान था?
उ5: यदि दूसरा पति या पत्नी पहली शादी से वास्तव में अनजान था, तो उसे धोखे का शिकार माना जाता है. जिस व्यक्ति ने पिछली शादी को छुपाया था, उसे बीएनएस की धारा 82 (2) के तहत गंभीर दंड का सामना करना पड़ेगा, जिसमें अधिक सजा का प्रावधान है. दूसरी शादी, हालांकि शून्य है, फिर भी मासूम दूसरे पति या पत्नी और ऐसे विवाह से पैदा हुए बच्चों को कुछ अधिकार प्रदान कर सकती है (जैसे रखरखाव, बच्चों की वैधता, कुछ मामलों में विरासत के अधिकार, विशिष्ट व्यक्तिगत कानूनों के आधार पर).
BNS Section 82
Q. मुस्लिमांसाठी BNS 82 काय आहे?
उत्तर: बीएनएस कलम 82 नुसार, एका विवाहित पुरुषाने त्याच्या पत्नीच्या जिवंत अवस्थेत दुसऱ्या स्त्रीशी विवाह केल्यास तो गुन्हा ठरतो. मात्र, जर कोणत्याही वैध वैद्यकीय, धार्मिक किंवा वैयक्तिक कायद्यानुसार दुसरे लग्न करणे परवानगीचे असेल, तर त्यावर ही कलम लागू होणार नाही. मुस्लिम पुरुषांना त्यांच्या वैयक्तिक कायद्यानुसार एकापेक्षा जास्त विवाह करण्याची परवानगी आहे, त्यामुळे बीएनएस 82 त्यांच्यावर लागू होत नाही, जोपर्यंत तो त्यांच्या वैयक्तिक कायद्याच्या विरोधात नाही.
Q. BNS की धारा 82 क्या है?
उत्तर: BNS की धारा 82 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति, जिसकी पत्नी जीवित है और वह विवाह के बंधन में बंधा हुआ है, किसी अन्य महिला से विवाह करता है (या विवाह करने का प्रयास करता है), तो यह अपराध माना जाएगा। यह धारा तभी लागू नहीं होगी जब व्यक्ति को ऐसा विवाह करने की अनुमति उसके धर्म या व्यक्तिगत कानून द्वारा हो, जैसे कि मुस्लिम पर्सनल लॉ।
Q. बीएनएस की धारा 82 (2) क्या है?
उत्तर: बीएनएस की धारा 82(2) यह स्पष्ट करती है कि यदि किसी व्यक्ति ने अपने पूर्व पति या पत्नी की मृत्यु, विवाह को अदालत द्वारा अमान्य घोषित किए जाने या तलाक हो जाने की वास्तविक और ईमानदार मान्यता के आधार पर दोबारा विवाह किया है, तो उस पर यह धारा लागू नहीं होगी। यानी यदि कोई व्यक्ति यह विश्वास करता है कि उसका पूर्व वैवाहिक संबंध समाप्त हो गया है, और उसने नई शादी कर ली, तो वह अपराध के दायरे में नहीं आएगा।
Q. What is Section 82 of BNS?
Answer: Section 82 of the Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS), 2023 criminalizes marrying again during the lifetime of a spouse. If a person, having a living spouse and a valid existing marriage, marries or attempts to marry another person, he or she shall be punishable with imprisonment. However, this section does not apply where the second marriage is permitted under the personal law applicable to the parties, such as in the case of Muslims under Muslim Personal Law.
Q. Is adultery a crime in BNS?
Answer: No, adultery is not a crime under the BNS, 2023. Following the Supreme Court’s judgment in Joseph Shine v. Union of India (2018), adultery is no longer a punishable offense in India. However, adultery can still be a ground for divorce or civil remedy under matrimonial laws.
Q. Can a man marry two wives legally in India?
Answer: Under Hindu personal law, a man cannot marry a second woman during the lifetime of his first wife unless he is legally divorced or the first marriage is annulled. Doing so is considered bigamy and is punishable under Section 82 of BNS, 2023. However, under Muslim personal law, a Muslim man can legally have up to four wives, provided he treats all wives equally and follows the rules laid down in Islamic law.
Q. Can a married man marry another woman without divorce in Islam?
Answer: Yes, under Muslim Personal Law in India, a Muslim man can marry another woman without divorcing his first wife. However, he must adhere to Islamic requirements, such as equal treatment of wives and just intention. Indian criminal law, including BNS Section 82, does not override this personal law provision for Muslims.
Q. Does Section 82 apply to Muslims?
Answer: Section 82 of BNS, 2023, does not apply to Muslims who marry more than once in accordance with their personal laws. Muslim Personal Law in India permits a man to have up to four wives. Therefore, if a Muslim man marries again while his first wife is alive, it is not an offense under Section 82 BNS—provided the marriage is done as per Islamic law. However, if a marriage violates the requirements of Muslim law (e.g., fraudulent or without consent), it may invite legal complications.
प्रश्न: मुस्लिमों के लिए BNS की धारा 82 क्या है?
उत्तर: BNS की धारा 82 कहती है कि अगर कोई शादीशुदा आदमी अपनी पत्नी के जिंदा रहते हुए दूसरी शादी करता है, तो यह कानून के तहत अपराध माना जाएगा। लेकिन अगर किसी व्यक्ति को उसके धर्म, रीति-रिवाज या व्यक्तिगत कानून के अनुसार दूसरी शादी करने की अनुमति है, तो उस पर यह कानून लागू नहीं होगा। मुस्लिम पुरुषों को उनके धार्मिक कानून के अनुसार एक से ज्यादा शादियां करने की इजाजत है, इसलिए जब तक वह इस्लामी कानून का पालन कर रहे हैं, तब तक उन पर BNS की धारा 82 लागू नहीं होती।
Q क्या द्विविवाह हिंदू कानून में मान्य है?
👉 नहीं, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार एक ही समय में एक विवाह मान्य होता है।
Q क्या मुस्लिम पुरुष को चार विवाह की अनुमति है?
👉 हाँ, मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत पुरुष को चार विवाहों की अनुमति है, जब तक सभी शादियाँ निष्पक्षता से निभाई जाएँ।
Q क्या दूसरी पत्नी को कानूनी सुरक्षा मिलती है?
👉 यदि दूसरी शादी अवैध है, तो महिला को ‘धोखे से विवाह’ या ‘सहजीवन’ के आधार पर अधिकार मिल सकते हैं — जैसे भरण-पोषण (maintenance)।
BNS Section 82 सामाजिक निहितार्थ और कानून का महत्व: (Social Point of View)
द्विविवाह केवल एक कानूनी अपराध नहीं है; इसके गहरे सामाजिक और भावनात्मक परिणाम होते हैं. यह अक्सर इन बातों की ओर ले जाता है:
- भावनात्मक संकट: इसमें शामिल सभी पक्षों के लिए, खासकर पहले पति या पत्नी और मासूम दूसरे पति या पत्नी के लिए, द्विविवाह का खुलासा भारी भावनात्मक आघात, विश्वासघात और मनोवैज्ञानिक संकट का कारण बन सकता है.
- पारिवारिक विघटन: यह पारिवारिक संरचनाओं को तोड़ सकता है, जिससे बच्चों के लिए विवाद, परित्याग और अस्थिरता हो सकती है.
- सामाजिक कलंक: द्विविवाह संबंधों में शामिल व्यक्तियों को सामाजिक बहिष्कार और प्रतिष्ठा का नुकसान हो सकता है.
- वित्तीय कठिनाई: यदि अपराधी सहायता प्रदान करने में विफल रहता है तो मासूम पति या पत्नी और बच्चों को वित्तीय कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है.
बीएनएस की धारा 82, द्विविवाह को अपराधीकरण करके, ऐसी प्रथाओं के खिलाफ एक महत्वपूर्ण निवारक के रूप में कार्य करती है. यह एकविवाह के सिद्धांत को बरकरार रखती है (उन समुदायों के लिए जहाँ यह व्यक्तिगत कानून द्वारा अनिवार्य है), वैवाहिक संबंधों की पवित्रता की रक्षा करती है, और व्यक्तियों को धोखे और शोषण से बचाती है. धारा 82 (2) में छिपाने के लिए बढ़ी हुई सजा विशेष रूप से वैवाहिक मामलों में धोखे से होने वाले गंभीर नुकसान को स्वीकार करती है और संबोधित करती है, जिससे अनजाने व्यक्तियों को अधिक सुरक्षा मिलती है.
Conclusion
निष्कर्ष रूप में, बीएनएस की धारा 82 भारत के आपराधिक न्यायशास्त्र में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो वैवाहिक अखंडता को बनाए रखने और व्यक्तियों को द्विविवाह के विनाशकारी परिणामों से बचाने के लिए राष्ट्र की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. इसके प्रावधानों को समझना प्रत्येक नागरिक के लिए अनुपालन सुनिश्चित करने और आवश्यकता पड़ने पर न्याय मांगने के लिए आवश्यक है.