Money Recovery Cases in Hindi : कानून, नोटिस, प्रक्रिया और उपाय – पूरी जानकारी, आज के दौर में उधार देना और लेना, व्यापारिक लेन-देन, चेक द्वारा भुगतान या ऑनलाइन पैसे भेजना आम बात हो गई है। लेकिन जब सामने वाला व्यक्ति या संस्था समय पर पैसे वापस नहीं करता, तो ऐसी स्थिति में कानूनी प्रक्रिया के ज़रिये पैसा वापस लिया जा सकता है।
इस लेख में हम बात करेंगे — भारत में पैसे की वसूली से जुड़े मुकदमों (Money Recovery Cases) के बारे में। इसमें हम कवर करेंगे:
👉 वसूली के प्रकार
👉 कौन-कौन से कानून लागू होते हैं
👉 कानूनी नोटिस देने की समयसीमा
👉 कौन-कौन से उपाय और रास्ते उपलब्ध हैं
👉 मुकदमा कैसे और कहाँ दाखिल करें
Money Recovery Case (पैसे की वसूली केस) क्या होता है?
जब कोई व्यक्ति, व्यापारी, कंपनी या बैंक, किसी को उधार देता है और सामने वाला पैसे नहीं लौटाता — तो उसे कानूनी रूप से पैसा वसूल करने का अधिकार होता है। इसी प्रक्रिया को कहते हैं Money Recovery Case यानी पैसे की वसूली का केस।
Money Recovery के मुख्य प्रकार
केस का प्रकार | उदाहरण |
चेक बाउंस केस | चेक लौट जाना — अकाउंट में पैसे न होने के कारण |
निजी उधारी या व्यापारिक बकाया | किसी से उधार दिए पैसे या सामान के बदले पेमेंट न मिलना |
सरकारी विभाग से बकाया | सरकारी संस्था से पेमेंट का क्लेम |
बैंक या फाइनेंस कंपनी का लोन | बैंक लोन की किश्त न चुकाना (SARFAESI के तहत) |
कंपनियों का डिफॉल्ट | IBC के तहत कंपनी द्वारा पेमेंट न करना |
सारांश वाद (Summary Suit) | कागजों के आधार पर जल्दी निपटारा चाहने वाले केस |
किन कानूनों के तहत पैसे की वसूली की जाती है?
✅ 1. नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 – धारा 138 (चेक बाउंस केस)
अगर आपका चेक बाउंस हो गया है तो आप धारा 138 के तहत केस कर सकते हैं।
- चेक कानूनी देनदारी के लिए होना चाहिए
- चेक बाउंस होने पर 30 दिन में नोटिस देना होगा
- सामने वाला 15 दिन में पेमेंट न करे तो केस दाखिल हो सकता है
👉 सजा: 2 साल तक की जेल या चेक के रक़म से दुगने तक का जुर्माना या दोनों।
✅ 2. दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) – Summary Suit (Order 37)
अगर आपका केस ऐसा है जिसमें दस्तावेज़ों के आधार पर पैसा वसूल करना है (जैसे: उधारी, बिल, चालान), तो आप Summary Suit (CPC Order 37) दाखिल कर सकते हैं।
👉 यह एक तेज़ प्रक्रिया होती है और मुकदमा लंबा नहीं खिंचता।
✅ 3. Indian Contract Act, 1872
अगर पैसा किसी Contract या समझौते के आधार पर देना था और सामने वाला भुगतान नहीं कर रहा — तो आप धारा 73 व 74 के तहत मुआवज़े की मांग कर सकते हैं।
✅ 4. SARFAESI अधिनियम, 2002 (बैंक द्वारा वसूली)
जब बैंक या फाइनेंस कंपनी ने किसी संपत्ति के बदले लोन दिया है, और कर्ज़दार पेमेंट नहीं कर रहा — तो बैंक SARFAESI कानून के तहत 60 दिन का नोटिस देकर सीधे प्रॉपर्टी कब्जे में ले सकता है। कोर्ट जाने की ज़रूरत नहीं होती।
✅ 5. दिवालियापन और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016
जब कोई कंपनी पैसा नहीं लौटा रही है — तो आप IBC के तहत NCLT में आवेदन दे सकते हैं।
- Section 7 – वित्तीय लेनदार (Financial Creditor)
- Section 9 – संचालन लेनदार (Operational Creditor)
- नोटिस देना अनिवार्य (10 दिन का डिमांड नोटिस)
✅ 6. धारा 80 – CPC (सरकारी विभाग से वसूली)
अगर आपको किसी सरकारी विभाग से पैसा लेना है — तो मुकदमा दाखिल करने से पहले 60 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है।
📬 नोटिस की समयसीमा (Notice Periods)
केस का प्रकार | कानून या धारा | नोटिस अवधि |
चेक बाउंस | NI Act, Section 138 | 15 दिन |
निजी उधारी या व्यापारिक दावा | CPC या अनुबंध अधिनियम | 15–30 दिन |
सरकारी विभाग से पैसा लेना | Section 80 CPC | 60 दिन |
कंपनियों से पैसा (IBC) | Section 8 of IBC | 10 दिन |
बैंक से लोन वसूली (SARFAESI) | Section 13(2) of SARFAESI | 60 दिन |
📌 मुकदमा दाखिल करने से पहले क्या करना ज़रूरी है?
- ✅ पहले यह साबित करें कि पैसा कानूनी रूप से देना बनता था
- ✅ सभी सबूत रखें – जैसे: एग्रीमेंट, चेक, रसीदें, ईमेल
- ✅ नोटिस भेजें (जिस कानून के अनुसार जरूरी हो)
- ✅ नोटिस की समयसीमा खत्म होने तक प्रतीक्षा करें
- ✅ तीन साल की सीमा (Limitation) में केस दाखिल करें
🛠️ पैसे की वसूली के लिए उपलब्ध कानूनी उपाय
- दीवानी मुकदमा (Civil Suit)
- Summary Suit (Order 37)
- धारा 138 के तहत केस
- SARFAESI अधिनियम के तहत संपत्ति जब्ती
- IBC के तहत दिवालियापन याचिका
- प्रॉपर्टी का अटैचमेंट (Order 38 Rule 5 CPC)
डिक्री मिलने के बाद वसूली की प्रक्रिया (Execution)
🧾 Money Recovery Cases कैसे और कहाँ दर्ज करें?
✅ A. दीवानी वसूली मुकदमा (Civil Recovery Suit)
- क्षेत्राधिकार (Jurisdiction):
- जहां आरोपी रहता है / व्यापार करता है
- जहां ट्रांजैक्शन हुआ
- जहां पैसा देना था
- जहां आरोपी रहता है / व्यापार करता है
- कोर्ट का चयन:
वसूली राशि | कोर्ट का नाम |
₹3 लाख से कम | सिविल जज जूनियर डिवीजन |
₹3 लाख से ₹20 लाख | सीनियर डिवीजन सिविल कोर्ट |
₹20 लाख से अधिक | ज़िला न्यायालय / वाणिज्यिक न्यायालय |
प्रक्रिया:- कानूनी नोटिस भेजना
- plaint (वादपत्र) तैयार करना
- कोर्ट फीस जमा करना
- मुकदमा दाखिल करना
- सुनवाई में भाग लेना
- डिक्री मिलने पर वसूली प्रक्रिया शुरू करना
- कानूनी नोटिस भेजना
✅ B. चेक बाउंस केस कैसे दाखिल करें?
- 30 दिन में शिकायत दाखिल करें (15 दिन की नोटिस अवधि के बाद)
- आवश्यक दस्तावेज़:
- चेक की कॉपी
- बाउंस का बैंक मेमो
- कानूनी नोटिस व उसकी रसीद
- बैंक स्टेटमेंट
- चेक की कॉपी
कोर्ट: मजिस्ट्रेट कोर्ट में केस दाखिल होता है।
✅ C. SARFAESI के तहत बैंक की वसूली प्रक्रिया
- 60 दिन का नोटिस देना होता है
- अगर उधारकर्ता नहीं चुकाता – बैंक सीधे संपत्ति कब्जे में ले सकता है
- उधारकर्ता DRT (Debt Recovery Tribunal) में अपील कर सकता है
✅ D. IBC के तहत कंपनी से वसूली
- NCLT (National Company Law Tribunal) में आवेदन देना होता है
- आवश्यक दस्तावेज़: बिल, नोटिस, बैंक स्टेटमेंट
- अगर कंपनी दिवालिया घोषित हो जाती है तो परिसमापन की प्रक्रिया शुरू होती है
📚 महत्वपूर्ण केस कानून (Case Laws)
✅ 1. K. Bhaskaran v. Sankaran Vaidhyan Balan (1999)
📌 मुख्य मुद्दा:
क्या चेक बाउंस के मामलों में नोटिस भेजना अनिवार्य है?
📚 फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में कहा कि अगर किसी ने किसी को चेक दिया और वो चेक बाउंस हो गया, तो धारा 138 NI Act के तहत केस दर्ज करने से पहले लीगल नोटिस भेजना जरूरी है।
⚖️ कोर्ट ने यह भी बताया कि चेक बाउंस केस में कुल 5 जरूरी बातें होनी चाहिए:
- चेक किसी कानूनी देनदारी को चुकाने के लिए दिया गया हो
- चेक तय तारीख पर बैंक में जमा किया गया हो
- चेक बैंक द्वारा ‘dishonour’ किया गया हो (बाउंस)
- 15 दिनों के भीतर लिखित नोटिस भेजा गया हो
- नोटिस के 15 दिन बाद भी पैसा नहीं चुकाया गया हो
💡 इस केस ने यह तय किया कि जब तक इन पाँच शर्तों को पूरा नहीं किया जाता, तब तक धारा 138 के तहत केस नहीं चल सकता।
✅ 2. Mardia Chemicals v. Union of India (2004)
📌 मुख्य मुद्दा:
क्या SARFAESI Act, 2002 का कानून संविधान के खिलाफ है?
📚 फैसला:
इस केस में कुछ लोगों ने कहा था कि SARFAESI कानून बैंक को बिना कोर्ट के सीधे संपत्ति कब्जे का अधिकार देता है, जो कि अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता) के खिलाफ है।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कानून संविधान के अनुसार सही और वैध है।
✔️ SARFAESI एक्ट बैंकों को अधिकार देता है कि वे बिना कोर्ट के बकायेदार की संपत्ति पर कब्जा कर सकें, लेकिन इसमें बकायेदार को अपील का अधिकार भी है।
💡 कोर्ट ने Section 17(2) को थोड़ा unconstitutional माना था लेकिन बाकी कानून को सही ठहराया।
✅ 3. Mobilox Innovations Pvt. Ltd. v. Kirusa Software Pvt. Ltd. (2017)
📌 मुख्य मुद्दा:
IBC (Insolvency and Bankruptcy Code) में “Dispute” का मतलब क्या है?
📚 फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कोई ऑपरेशनल क्रेडिटर IBC के तहत केस करता है और अगर कंपनी कहती है कि पैसे को लेकर पहले से कोई विवाद (dispute) है, तो वो केस आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।
⚖️ यहाँ कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि अगर कंपनी ये साबित कर दे कि पेमेंट से पहले ही कोई वैध और गंभीर विवाद था, तो NCLT को उस केस को खारिज करना चाहिए।
💡 यानी, सिर्फ ये दिखा देना कि पैसे बकाया हैं, काफी नहीं है।
अगर डिफॉल्टर कंपनी यह दिखा दे कि कोई पुराना डिस्प्यूट पहले से चल रहा है, तो IBC के तहत इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती।
✅ 4. Bihari Chowdhary v. State of Bihar (1984)
📌 मुख्य मुद्दा:
क्या सरकार के खिलाफ केस करने से पहले नोटिस भेजना जरूरी है?
📚 फैसला:
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति सरकार या सरकारी अफसर के खिलाफ मुकदमा करना चाहता है, तो उसे पहले धारा 80 CPC के तहत दो महीने पहले नोटिस भेजना जरूरी है।
⚖️ इसका मकसद यह है कि सरकार के पास मामला निपटाने का मौका मिले और कोर्ट का समय बच सके।
💡 कोर्ट ने यह भी कहा कि यह नोटिस केवल फार्मेलिटी नहीं है, बल्कि एक अनिवार्य कदम है, जिसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
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BNS section 129, 130 and 131 in Hindi
❓ FAQs Money Recovery Cases से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1. क्या मैं पैसे की वसूली के लिए FIR दर्ज करवा सकता हूँ?
👉 आमतौर पर नहीं, क्योंकि पैसे की वसूली सिविल मामला होता है। लेकिन अगर सामने वाला धोखाधड़ी, ठगी या विश्वासघात करता है, तो FIR दर्ज की जा सकती है।
2. पैसे की वसूली के लिए कानूनी कदम क्या हैं?
👉 पहले कानूनी नोटिस भेजिए, फिर जरूरत पड़े तो सिविल केस (Order 37 CPC के तहत) फाइल कर सकते हैं। अगर चेक बाउंस हुआ है तो NI Act, या अगर कंपनी है तो IBC, और बैंक लोन का मामला है तो SARFAESI Act इस्तेमाल किया जा सकता है।
3. क्या पैसे की वसूली के लिए आपराधिक केस किया जा सकता है?
👉 हाँ, लेकिन तभी जब मामला धोखाधड़ी (IPC 420 / BNS 318) या विश्वासघात (IPC 406 / BNS 316) का हो। सिर्फ उधारी वापस न मिलने पर क्रिमिनल केस नहीं होता, उसके लिए सिविल उपाय अपनाना होगा।
4. पैसे की वसूली के लिए BNS में कौन सा सेक्शन है?
👉 BNS 2023 में पैसे की सिविल वसूली के लिए कोई खास धारा नहीं है। लेकिन अगर सामने वाला धोखाधड़ी करता है, तो धारा 316, 318, 319 लागू हो सकती हैं।
5. क्या पुलिस पैसे की वसूली में मदद कर सकती है?
👉 ❌ सिर्फ सिविल विवाद में नहीं। पुलिस तभी कुछ कर सकती है जब क्रिमिनल एलीमेंट हो, जैसे धोखाधड़ी या गबन। वरना आपको सिविल कोर्ट में जाना होगा।
6. पैसे की वसूली वाले केस में कोर्ट फीस कितनी लगती है?
👉 ये राज्य के हिसाब से अलग-अलग होती है और इस पर निर्भर करती है कि आप कितने पैसे का दावा कर रहे हैं। जैसे दिल्ली में करीब 1% से 4% तक की फीस लग सकती है।
7. किसी से कानूनी तरीके से पैसे कैसे वसूलें?
👉
- पहले एक कानूनी नोटिस भेजें
- फिर सिविल केस फाइल करें (CPC के तहत)
- अगर चेक बाउंस हुआ है तो NI Act का सहारा लें
- कंपनी से पैसा लेना है तो IBC के तहत NCLT में जाएं
- अगर बैंक हैं या सिक्योर्ड लेंडर हैं तो SARFAESI Act का इस्तेमाल करें
8. अगर कोई पैसे वापस नहीं कर रहा तो क्या करें?
👉 पहले उसे एक कानूनी नोटिस भेजिए। अगर तब भी पैसा नहीं मिलता, तो सिविल सूट फाइल कीजिए। अगर आपको लगता है कि उसने जानबूझकर ठगी की है, तो पुलिस कंप्लेंट या कोर्ट में क्रिमिनल केस कर सकते हैं।
9. क्या पुलिस सिविल मामलों में कार्रवाई कर सकती है?
👉 ❌ नहीं, पुलिस सिर्फ आपराधिक मामलों में कार्रवाई कर सकती है। सिविल मामले जैसे उधारी, प्रॉपर्टी विवाद आदि में आपको कोर्ट में जाना होता है।
10. क्या मैं 3 साल के बाद भी वसूली का केस फाइल कर सकता हूँ?
👉 ⛔ नहीं, क्योंकि Limitation Act के अनुसार सिर्फ 3 साल के अंदर ही केस फाइल किया जा सकता है, जब पैसे की ड्यू डेट निकल गई हो। हां, अगर कोई acknowledgement या written promise हो, तो वक्त बढ़ सकता है।
In English for English readers
1. Can I file FIR for money recovery?
👉 Generally, no. Money recovery is a civil matter, not a criminal one. However, if fraud, cheating, or criminal breach of trust is involved, then an FIR under criminal sections may be registered.
2. What is the legal action for recovery of money?
👉 You can send a legal notice and file a civil suit for recovery under Order 37 CPC or general civil procedure, depending on the facts. Other remedies include NI Act (for cheque bounce), IBC, or SARFAESI, if applicable.
3. Can criminal case be filed for recovery of money?
👉 Only if the case involves cheating (Section 420 IPC/ Section 318 BNS) or criminal breach of trust (Section 406 IPC/Section 316 BNS). Otherwise, recovery is done through civil remedies.
4. What is the BNS section for recovery of money?
👉 No specific BNS section is dedicated to civil money recovery. However, if cheating or fraud is involved, Sections 316, 318, 319 of BNS 2023 may apply.
5. Can police help in money recovery?
👉 Not in civil disputes. Police can act only when there’s a criminal offense like fraud, cheating, or misappropriation. For normal loan disputes, go to civil court.
6. What is the court fee for a money suit?
👉 The court fee is based on the amount claimed and differs by state rules. For example, in Delhi, it’s approx. 1% to 4% of the suit amount.
7. How can I legally recover money from someone?
👉
- Send a legal notice
- File a civil suit under CPC
- Use NI Act for cheque cases
- Approach NCLT under IBC (if debt > ₹1 lakh for operational creditors)
- Use SARFAESI Act (if you’re a secured bank/lender)
8. What to do if someone is not giving money back?
👉 Send a legal notice first. If no response, file a civil recovery suit. If cheating is involved, lodge a police complaint or criminal complaint in magistrate court.
9. Can police take action in civil cases?
👉 ❌ No, police does not intervene in purely civil disputes. You must approach civil court for resolution.
10. Can I file a recovery suit after 3 years?
👉 ⛔ No, unless there is a valid reason or acknowledgement of debt. As per Limitation Act, recovery suits must be filed within 3 years from the date the debt became due.
❓ क्या वकील की मदद जरूरी है?
👉 जरूरी नहीं, लेकिन मुकदमे की प्रक्रिया में वकील से मदद लेना बेहतर होता है।
🏁 निष्कर्ष (Conclusion)
अगर कोई आपका पैसा रोक कर बैठा है — तो घबराने की जरूरत नहीं। कानूनों में कई विकल्प मौजूद हैं। बस सही समय पर कानूनी कदम उठाएं, सही नोटिस दें, और अदालत में उचित मुकदमा दाखिल करें।
अगर आप एक छात्र हैं या वकील हैं, तो पैसे की वसूली से जुड़े ये कानून आपके कानूनी ज्ञान को और मज़बूत करेंगे। कृपया इस लेख को ज्यादा से ज्यादा शेर करे और लेखक का हौसला बढ़ाये |
