CPC Order 7 Rule 11: Rejection of a Plaint in Hindi

CPC Order 7 Rule 11: Rejection of a Plaint in Hindi जब कोई दीवानी वाद (civil suit) दायर किया जाता है, तो Plaint वह पहला दस्तावेज़ होता है जिसमें वादी (Plaintiff) अपने दावे को प्रस्तुत करता है। हालांकि, सभी Plaint वैध नहीं माने जाते, और न्यायालय के पास कुछ विशेष परिस्थितियों में Plaint को अस्वीकार (Reject) करने का अधिकार होता है।

CPC आदेश 7 नियम 11 के अंतर्गत Plaint को अस्वीकार करने से संबंधित नियमों और न्यायिक निर्णयों (precedents) को समझना, दीवानी मुकदमों (civil litigation) में वादी (Plaintiff) और प्रतिवादी (Defendant) — दोनों के लिए अत्यंत आवश्यक होता है।


CPC आदेश 7 नियम 11 के अंतर्गत Plaint को अस्वीकार करने के आधार

नागरिक प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 7 नियम 11 के तहत निम्नलिखित परिस्थितियों में plaint को अस्वीकार (Reject) किया जा सकता है:


(a) जब Plaint किसी कारण का खुलासा नहीं करता (Cause of Action का अभाव हो):

  • एक Plaint में स्पष्ट रूप से यह दर्शाया जाना चाहिए कि वादी के पास मुकदमा दायर करने का कानूनी अधिकार है।
  • न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह यह निर्धारित करे कि क्या कोई कारण-ए-दावा (Cause of Action) मौजूद है, इससे पहले कि वह समन (Summons) जारी करे।
  • न्यायालय को केवल Plaint में किए गए कथनों की जांच करनी चाहिए — प्रतिवादी द्वारा दी गई दलीलों को ध्यान में रखे बिना — यह देखने के लिए कि क्या कारण-ए-दावा उत्पन्न होता है।
  • यदि Plaint में किए गए बयानों के अनुसार ही यह स्पष्ट होता है कि दावा समय-सीमा (Limitation) से बाहर है, तो Plaint को अस्वीकार किया जा सकता है। केवल प्रतिवादी की दलील के आधार पर नहीं। लेकिन यदि Plaint में ही यह कहा गया हो कि वाद समय-सीमा के अंदर है, तो नियम 11(d) लागू नहीं होगा।
  • यह तर्क कि “वाद के लिए कोई कारण नहीं था” और यह कि “Plaint किसी कारण का खुलासा नहीं करता” — दोनों अलग-अलग बातें हैं।

(b) जब दावा किया गया राहत मूल्य (Valuation) कम है, और न्यायालय द्वारा वादी को मूल्य सुधारने के लिए कहा जाए, और वह निर्धारित समय के भीतर ऐसा करने में विफल रहे:

  • यदि वादी द्वारा किए गए मूल्यांकन में कमी है, तो न्यायालय को पहले वादी को यह सुधारने का अवसर देना चाहिए।
  • केवल तभी Plaint को अस्वीकार किया जा सकता है जब वादी न्यायालय द्वारा दिए गए समय के भीतर मूल्यांकन को ठीक नहीं करता।
  • यदि न्यायालय यह पाता है कि मूल्यांकन मनमाना है, तो वह वादी को निर्देश दे सकता है कि वह उचित मूल्यांकन करें।
  • यदि सही मूल्यांकन करने पर न्यायालय को यह वाद सुनने का अधिकार नहीं रहेगा, तो ऐसे में नियम 10 के तहत Plaint को वापस किया जाना चाहिए, न कि नियम 11(b) के तहत अस्वीकार किया जाए।

(c) जब दावा किया गया राहत सही मूल्यांकित है, लेकिन Plaint अपर्याप्त स्टैम्प पेपर पर प्रस्तुत किया गया है, और न्यायालय द्वारा आवश्यक स्टैम्प शुल्क भरने के निर्देश दिए जाने के बावजूद, वादी निर्धारित समय में उसे पूरा नहीं करता:

  • न्यायालय किसी भी चरण पर वादी को शेष न्याय शुल्क (Court Fee) जमा करने का अवसर दे सकता है।
  • केवल तभी Plaint को अस्वीकार किया जा सकता है जब वादी निर्धारित समय में उस कमी को पूरा न करे।

(d) जब Plaint में किए गए बयानों से यह प्रतीत होता है कि वाद किसी क़ानून द्वारा वर्जित (Barred by Law) है:

  • जब Plaint के अपने कथनों से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि वाद किसी क़ानून, जैसे कि समय-सीमा (Limitation) आदि के कारण अवैध है, तो Plaint को अस्वीकार किया जा सकता है।
  • उदाहरण के तौर पर, यदि सरकार के खिलाफ वाद दायर किया गया है और CPC की धारा 80 के अंतर्गत आवश्यक पूर्व-नोटिस नहीं दिया गया है, तो Plaint को अस्वीकार किया जाना चाहिए।

(e) जब Plaint डुप्लीकेट (Duplicate) में दाखिल नहीं किया गया हो:

  • Plaint को दो प्रतियों (डुप्लीकेट) में दाखिल करना अनिवार्य होता है।
  • यदि यह नियम पूरा नहीं किया गया है, तो Plaint को अस्वीकार किया जा सकता है।

(f) जब वादी आदेश 7 के नियम 9 के प्रावधानों का पालन करने में विफल रहता है:

  • इसका तात्पर्य है कि वादी द्वारा लिखित विवरण (Written Statement) प्रस्तुत करने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया हो।
  • ऐसी स्थिति में भी Plaint को अस्वीकार किया जा सकता है।

क्या Plaint को आंशिक रूप से अस्वीकार किया जा सकता है?

हाँ, जब एक वाद (Suit) कई प्रतिवादियों (Defendants) के विरुद्ध दायर किया गया हो और यह कुछ प्रतिवादियों के विरुद्ध अवैध (Barred) हो लेकिन अन्य के विरुद्ध वैध हो, तो उचित कार्रवाई यह होती है कि जिन प्रतिवादियों के विरुद्ध वाद अवैध है, उनके खिलाफ Plaint को हटाया जाए, और शेष प्रतिवादियों के विरुद्ध वाद को आगे बढ़ाया जाए।
इसलिए, Plaint को आंशिक रूप से अस्वीकार (Reject) किया जा सकता है।


क्या O 7 R 11 के आवेदन के प्रभाव को निष्प्रभावी (Nullify) करने के लिए Plaint में Amendment किया जा सकता है?

(Can a Plaint be Amended to Nullify the Effect of an Application under Order 7 Rule 11 of CPC?)

हाँ, Plaint में संशोधन (Amendment) किया जा सकता है।

  • न्यायालय पक्षकारों को अपने प्लीडिंग (Pleadings) में संशोधन करने की अनुमति दे सकता है।
  • यदि संशोधन वास्तविक विवाद के प्रश्न का समाधान करने के लिए आवश्यक है और वह दूसरी ओर अन्याय या पक्षपात नहीं करता, तो ऐसे संशोधन की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • Plaint को संशोधित कर मूल्यांकन (Valuation) ठीक किया जा सकता है या न्याय शुल्क (Court Fee) की कमी को पूरा किया जा सकता है।
  • यदि Plaint के बयानों से प्रतीत होता है कि वाद समय-सीमा (Limitation) के कारण अवैध है, तो सुनवाई के समय न्यायालय Plaint को संशोधित करने की अनुमति दे सकता है।
  • यदि न्यायालय को लगता है कि मूल्यांकन मनमाना (Arbitrary) है, तो वादी को मूल्यांकन को संशोधित करने का निर्देश दिया जा सकता है।
  • CPC के आदेश II नियम 2 के प्रावधान संशोधन आवेदन (Amendment Application) को रोकते नहीं हैं।
  • संशोधन के लिए किया गया आवेदन उस कारण-ए-दावा (Cause of Action) से अलग होता है जिसे संशोधन द्वारा जोड़ा जाना प्रस्तावित है।
  • यहां तक कि यदि संशोधन की अनुमति दी जाती है, तब भी यह निर्धारित किया जाना आवश्यक है कि क्या नया जोड़ा गया कारण-ए-दावा समय-सीमा के भीतर है या नहीं — इस पर न्यायालय को निर्णय देना होगा।

O 7 R 11 के तहत Plaint अस्वीकार करने के आदेश के विरुद्ध उपाय (Remedy):

यदि किसी Plaint को आदेश 7 नियम 11 के तहत अस्वीकार कर दिया जाता है, तो वादी (Plaintiff) को उसी कारण-ए-दावा (Same Cause of Action) के आधार पर नया Plaint दायर करने से रोका नहीं जाता।
Plaint को अस्वीकार करने से वादी को उसी विषय पर एक नया वाद दायर करने से वंचित नहीं किया जाता।


क्या O 7 R 11 के तहत पारित आदेश के खिलाफ अपील या पुनरीक्षण (Revision) किया जा सकता है?

हाँ, आदेश 7 नियम 11 के तहत Plaint को अस्वीकार (Reject) करने का आदेश Appealable है।

  • आदेश 43 नियम 1(a) के तहत, Plaint को अस्वीकार करने का आदेश विशेष रूप से अपील योग्य है।
  • इसके अतिरिक्त, धारा 115 के तहत Revision Application भी स्वीकार्य है, यदि धारा 115 में दिए गए शर्तें पूरी होती हैं
  • उच्च न्यायालय (High Court) उस आदेश की पुनरीक्षा कर सकता है जिसे किसी अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Court) ने पारित किया हो, जहाँ उसके खिलाफ कोई अपील उपलब्ध नहीं है
  • पुनरीक्षण तब किया जा सकता है जब:
    • अधीनस्थ न्यायालय ने ऐसा अधिकार प्रयोग किया हो जो उसे कानून द्वारा प्राप्त नहीं था,
    • ऐसा कोई अधिकार प्रयोग करने में विफल रहा हो जो उसे प्राप्त था, या
    • उसने किसी कानूनी त्रुटि या गंभीर प्रक्रिया संबंधी त्रुटि के साथ कार्य किया हो।

READ MORE : Money Recovery Cases in Hindi : कानून, नोटिस, प्रक्रिया और उपाय – पूरी जानकारी,

BNS Defamation Section 356 in Hindi


CPC आदेश 7 नियम 11 : Plaint की अस्वीकृति से संबंधित प्रमुख निर्णय (Landmark Cases)

1. अब्दुल गफ्फार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (AIR 2023 SC 78)

वादी (Plaintiff) ने सरकार की कार्रवाई को चुनौती देते हुए वाद दायर किया था बिना धारा 80 CPC के तहत अनिवार्य नोटिस दिए
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश 7 नियम 11(d) के तहत Plaint को अस्वीकार करने को सही ठहराया, यह कहते हुए कि प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का पालन न करने से वाद कानून द्वारा निषिद्ध हो जाता है


2. State Bank of India बनाम ए. रमण और अन्य

(Civil Appeal No. 10446 of 2017)
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि आदेश 7 नियम 11 का उद्देश्य बेहूदा और तकनीकी रूप से त्रुटिपूर्ण वादों को प्रारंभिक स्तर पर हटाना है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायालयों को अत्यधिक तकनीकी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह अवश्य देखना चाहिए कि Plaint में कोई कारण-ए-दावा (Cause of Action) प्रकट होता है और वह मूलभूत कानूनी आवश्यकताओं का पालन करता है।


3. सलीम भाई व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य (2002 AIR SC 759)

ट्रायल कोर्ट ने आदेश 7 नियम 11 के आधारों पर विचार किए बिना Plaint को अस्वीकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Plaint की अस्वीकृति केवल नियम 11 में उल्लिखित आधारों तक सीमित होनी चाहिए, और यह निर्णय केवल Plaint के बयानों के आधार पर लिया जाना चाहिए।


4. आईटीसी लिमिटेड बनाम डेट रिकवरी अपीलेट ट्रिब्यूनल

[(1998) 2 SCC 70]
इस निर्णय में कहा गया कि केवल चालाकी से ड्राफ्टिंग कर किसी काल्पनिक कारण-ए-दावा का भ्रम पैदा करना स्वीकार्य नहीं है। Plaint में स्पष्ट रूप से वादी का दावा और वाद करने का अधिकार दर्शाया जाना चाहिए।


5. ओडिशा माइनिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम क्लॉक्नर एंड कंपनी (AIR 1996 Ori 163)

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वाद आदेश 7 नियम 11(a) के तहत बाधित है या नहीं यह तय करने के लिए केवल Plaint के कथनों को ही देखा जाना चाहिए, प्रतिवादी के बचाव (Defence) को नहीं।


6. सी. नटराजन बनाम असीम बाई (AIR 2008 SC 363)

कोर्ट ने माना कि अगर Plaint में किए गए आरोप, चाहे उन्हें सही मान भी लिया जाए, किसी कानून द्वारा निषिद्ध प्रतीत होते हैं, तो आदेश 7 नियम 11 के तहत Plaint को अस्वीकार करने का आवेदन दाखिल किया जा सकता है


7. रामनिकलाल बनाम मथुरलाल (AIR 1965 Guj 214)

इस निर्णय में कहा गया कि अगर किसी Plaint का कारण-ए-दावा समय-सीमा (Law of Limitation) के तहत बाधित है, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि Plaint में कोई कारण-ए-दावा नहीं है।
ऐसे Plaint में कारण-ए-दावा होता है, लेकिन वादी का उस पर दावा करने का अधिकार सीमित समय के बाद समाप्त हो गया होता है


8. Martin & Harris Ltd बनाम छठे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश [(1998) 1 SCC 732]


इस मामले में याचिकाकर्ता (appellant) ने याचिका को खारिज करने की मांग की क्योंकि उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किराया और बेदखली का विनियमन) अधिनियम, 1972 की धारा 21(1)(a) के अनुसार, छह महीने की अवधि पूरी नहीं हुई थी और इस कारण कारण-कार्य (cause of action) पूरा नहीं हुआ था।
निर्णय: अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पहले दायर की गई याचिका को वापस लेकर, निर्धारित 6 महीने की अवधि पूरी होने के बाद फिर से नई याचिका दाखिल कर सकता था।


9. सत्यानंद साहू बनाम रतिकांत पांडा (AIR 1997 Ori 67)


निष्कर्ष: अदालत का कर्तव्य है कि वह वादपत्र (plaint) में किए गए दावों को ध्यान से देखे और यह तय करे कि क्या वाद समय-सीमा (limitation) के अंदर आता है या नहीं।


10. मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय बनाम प्रिया सोलोमन (AIR 1999 Raj 102)


बिंदु: सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की आदेश 7 नियम 11(d) केवल उन्हीं मामलों में लागू होता है जहाँ वादी (plaintiff) के वादपत्र में स्पष्ट रूप से यह दिखता है कि वाद किसी प्रचलित कानून के तहत प्रतिबंधित (barred) है।
यदि वादी ने दावा किया है कि कारण-कार्य (cause of action) किसी विशेष दिन उत्पन्न हुआ था और वाद समय के भीतर है, तो इस नियम के अंतर्गत वादपत्र को खारिज नहीं किया जा सकता।


11. जे. पटेल एंड कंपनी बनाम नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रियल कोऑपरेटिव्स लिमिटेड (AIR 1996 Cal 253)
मुद्दा: यदि वादपत्र को पढ़कर यह प्रतीत होता है कि वाद समय से बाहर (time-barred) है, चाहे उसमें ऋण की स्वीकारोक्ति (acknowledgment of debt) का उल्लेख भी हो, तब भी वादपत्र को आदेश 7 नियम 11 के अंतर्गत खारिज किया जा सकता है।


12. खाजा कुतुबुल्लाह बनाम आंध्र प्रदेश सरकार (AIR 1995 AP 43)
निष्कर्ष: समय-सीमा (limitation) का सवाल अक्सर कानून और तथ्य का मिला-जुला प्रश्न (mixed question of law and fact) होता है।
इसलिए जब तक वादपत्र में स्पष्ट रूप से कोई समय की बाधा दिखाई न दे, इसे प्रारंभ में खारिज नहीं किया जा सकता।


13. केंद्र शासित प्रदेश त्रिपुरा बनाम इंदु भूषण (AIR 1963 Tri 48)
मुख्य बात: यदि सरकार के खिलाफ दायर वाद में वादी यह उल्लेख नहीं करता कि धारा 80 के तहत अनिवार्य नोटिस दिया गया है, तो वादपत्र खारिज किया जा सकता है।
कानूनी सिद्धांत: सरकार के खिलाफ वाद दायर करने से पहले अनिवार्य नोटिस देना जरूरी है।


14. फूलसुंदरी बनाम गुरबंस सिंह (AIR 1957 Raj 97)
बिंदु: जब किसी वाद में कई प्रतिवादी (defendants) होते हैं और उनमें से कुछ के खिलाफ वाद अवैध (barred) होता है लेकिन कुछ के खिलाफ वैध होता है, तो जिनके खिलाफ वाद अवैध है उनके विरुद्ध वाद हटा दिया जाना चाहिए और शेष प्रतिवादियों के विरुद्ध वाद जारी रह सकता है।


15. श्रीरामुलु बनाम राजू [(1950) 1 Mad LJ 180]
मुद्दा: यदि वादपत्र में मूल्यांकन (valuation) या न्यायालय शुल्क (court-fee) में कोई कमी हो, तो अदालत को पहले वादी को सुधारने का अवसर देना चाहिए। यदि वादी ऐसा करने में विफल रहता है, तभी वादपत्र को आदेश 7 नियम 11 के अंतर्गत खारिज किया जाना चाहिए।


16. टी. अरिवंदानंदम बनाम टी. वी. सत्यपाल (1977 AIR 2421, 1978 SCR (1) 742)


प्रसिद्ध निर्णय: इस ऐतिहासिक निर्णय में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह सिद्धांत तय किया कि यदि कोई वादपत्र झूठा (frivolous) या प्रताड़नात्मक (vexatious) हो और उसमें कोई वास्तविक कारण-कार्य (cause of action) नहीं हो, तो अदालत को उसे प्रारंभिक चरण में ही खारिज कर देना चाहिए।
तथ्य: इस मामले में वादी ने एक ऐसा वाद दाखिल किया जिसमें कोई असली विवाद नहीं था और वह केवल प्रतिवादी को परेशान करने के लिए था।
निर्णय: अदालत ने कहा कि ऐसे झूठे मामलों को तुरंत खारिज कर देना चाहिए ताकि न्यायपालिका का समय और संसाधन बर्बाद न हो।
महत्त्व: यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए मार्गदर्शक बना। अदालतों को निर्देश दिया गया कि वे ऐसे मामलों को शुरू में ही खारिज करें।

Brown-and-Black-Simple-Professional-Law-Firm-Presentation-7-min-1024x576 CPC Order 7 Rule 11: Rejection of a Plaint in Hindi
CPC Order 7 Rule 11: Rejection of a Plaint in Hindi

FAQs: Order 7 Rule 11 CPC Plaint को ख़ारिज करने के बारे में

1. Order 7 Rule 11 CPC के तहत plaint को ख़ारिज करने के क्या आधार होते हैं?
Plaint को तब ख़ारिज किया जा सकता है जब:

  • वह कारण-ए-कार्रवाई (Cause of Action) नहीं बताता है,
  • दावा कम मूल्य पर किया गया हो और उसे सुधारा न गया हो,
  • न्यायालय शुल्क (Court Fee) कम हो और उसे पूरा न किया गया हो,
  • वाद किसी कानून द्वारा प्रतिबंधित हो,
  • Plaint की प्रतिलिपि (Duplicate copy) न दी गई हो, या
  • वादी CPC के Rule 9 का पालन न करे।

2. क्या ख़ारिज किए गए plaint को संशोधित किया जा सकता है?
हाँ, अदालत आमतौर पर वादी को यह अनुमति देती है कि वह त्रुटियाँ जैसे गलत मूल्यांकन, कम कोर्ट फीस या अन्य तकनीकी गलतियाँ ठीक कर सके। यह संशोधन प्रतिवादी (दूसरे पक्ष) को नुकसान पहुँचाए बिना और ख़ारिज करने के कारणों को दूर करते हुए किया जाना चाहिए।

3. क्या plaint का कुछ हिस्सा ही ख़ारिज किया जा सकता है?
हाँ, यदि वाद कई प्रतिवादियों के विरुद्ध दायर किया गया है और कुछ प्रतिवादियों के विरुद्ध वह कानून द्वारा निषिद्ध है, तो उनके विरुद्ध plaint को ख़ारिज किया जा सकता है जबकि शेष के विरुद्ध वाद आगे चल सकता है।

4. अगर दावा (Relief) का मूल्यांकन कम किया गया हो तो क्या होगा?
अगर दावा कम मूल्य पर किया गया हो, तो न्यायालय वादी को एक निर्धारित समय में सही मूल्यांकन करने को कहेगा। अगर वादी ऐसा करने में विफल रहता है, तो plaint को Order 7 Rule 11 के तहत ख़ारिज किया जा सकता है।

5. क्या plaint को ख़ारिज करने का आदेश अपील योग्य होता है?
हाँ, Order 43 Rule 1(a) CPC के अनुसार plaint को ख़ारिज करने का आदेश अपील योग्य होता है। वादी उपयुक्त अपीलीय न्यायालय में अपील कर सकता है।

6. plaint ख़ारिज होने के बाद क्या नया वाद दायर किया जा सकता है?
हाँ, अगर वादी वही कारण-ए-कार्रवाई (cause of action) लेकर आता है और पिछली खामियों को सुधार कर नया वाद दायर करता है, तो नया वाद दायर किया जा सकता है।

7. Order 7 Rule 11 CPC के अंतर्गत “कानून द्वारा प्रतिबंधित” (barred by law) का क्या मतलब है?
इसका मतलब है कि वाद किसी प्रचलित कानून के तहत निषिद्ध है, जैसे कि सीमावधि अधिनियम (Limitation Act) के तहत समयसीमा से बाहर हो जाना, या धारा 80 CPC के तहत आवश्यक नोटिस न देना।

8. यदि कोर्ट फीस पर्याप्त नहीं है तो उपाय क्या है?
अगर अदालत को लगता है कि पूरी कोर्ट फीस नहीं दी गई है, तो वह वादी को एक निश्चित समय में शेष राशि भरने का निर्देश दे सकती है। अगर वादी निर्देश का पालन नहीं करता है, तभी plaint को ख़ारिज किया जाता है।

9. Plaint को “Reject” करने और “Return” करने में क्या अंतर है?
Rule 11 के तहत plaint को Reject करने का मतलब है कि वाद को समाप्त कर दिया गया। वहीं Rule 10 के तहत plaint को Return करने का मतलब है कि वादी उसे सही न्यायालय या क्षेत्राधिकार में पुनः दाखिल कर सकता है।

10. क्या बिना वादी को सुने plaint को ख़ारिज किया जा सकता है?
अधिकांश मामलों में, अदालत plaint के कथनों को देखकर निर्णय लेती है। हालांकि, यदि आवश्यक हो तो अदालत वादी को सुन सकती है ताकि कुछ बिंदुओं पर स्पष्टता मिल सके।

11. Rule 11 का CPC के Rule 9 से क्या संबंध है?
यदि वादी Rule 9 के तहत आवश्यक प्रक्रिया, जैसे duplicate copy जमा करने या अन्य प्रक्रियात्मक शर्तों का पालन नहीं करता, तो उसका plaint Rule 11 के तहत ख़ारिज किया जा सकता है।

12. Plaint ख़ारिज करने के आदेश के विरुद्ध अपील करने की समयसीमा क्या है?
Limitation Act के अनुसार, आमतौर पर वादी को आदेश की तारीख से 30 दिनों के भीतर अपील दायर करनी होती है।


सारांश:

Order 7 Rule 11 CPC के अंतर्गत plaint को ख़ारिज करने के विशेष आधार दिए गए हैं। हालांकि यह एक महत्वपूर्ण कदम है, CPC यह भी प्रावधान करता है कि वादी अपनी त्रुटियाँ सुधार कर वाद को संशोधित कर सकता है। अगर plaint ख़ारिज हो जाता है, तो वादी के पास नया वाद दायर करने या अपील करने का विकल्प मौजूद होता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top