BNS Section 72 in Hindi जब कोई मामला संवेदनशील अपराधों से जुड़ा होता है, तो पीड़िता की गरिमा और उसकी निजता की रक्षा करना सबसे ज़रूरी होता है। भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 72 पीड़ितों के लि एक कानूनी ढाल की तरह काम करती है, जो यह सुनिश्चित करती है कि उनकी पहचान सार्वजनिक न की जाए।
यह प्रावधान पीड़िता-केंद्रित न्याय के सिद्धांतों को आगे बढ़ाता है और संविधान द्वारा प्रदत्त निजता के अधिकार के अनुरूप है। इसका मकसद यह है कि पीड़िता को दोबारा मानसिक आघात न झेलना पड़े, न ही उसे सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया जाए या मीडिया ट्रायल का सामना करना पड़े।
इस कानून के अनुसार, केवल कुछ सीमित और नियंत्रित परिस्थितियों में ही पीड़िता की पहचान उजागर करने की अनुमति दी जा सकती है—वो भी तब, जब या तो लिखित अनुमति प्राप्त हो, या अधिकृत अधिकारी की स्वीकृति हो।
BNS Section 72 in Hindi – कुछ अपराधों की पीड़िता की पहचान को उजागर करने पर रोक
(1) अगर कोई व्यक्ति किसी ऐसे अपराध की पीड़िता (Victim) का नाम छापता है या ऐसा कोई भी विवरण (जैसे फोटो, पता, स्कूल का नाम आदि) छापता है या प्रकाशित करता है जिससे उसकी पहचान उजागर हो सकती है — और ये अपराध धारा 64 से लेकर 71 तक में शामिल हों — तो ऐसा करने वाले को दो साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भी लगेगा।
इन अपराधों में आमतौर पर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराध शामिल होते हैं।
(2) हालांकि, ऊपर जो पाबंदी है वो हर स्थिति में लागू नहीं होती। नीचे दी गई खास परिस्थितियों में नाम या पहचान बताना मना नहीं है:
- (a) अगर पीड़िता की पहचान पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी या जांच कर रहे पुलिस अधिकारी द्वारा लिखित आदेश से, और ईमानदारी से जांच के उद्देश्य से की गई हो,
- (b) अगर खुद पीड़िता ने लिखित में अनुमति दी हो,
- (c) अगर पीड़िता मृत हो गई हो, या बच्ची हो, या मानसिक रूप से अस्वस्थ हो, तब उसका करीबी रिश्तेदार (next of kin) अगर लिखित में अनुमति दे दे।
परंतु, अगर पहचान उजागर करने की अनुमति पीड़िता के रिश्तेदार ने दी है, तो वो अनुमति सिर्फ किसी मान्यता प्राप्त सामाजिक कल्याण संस्था (welfare organisation) के चेयरमैन या सचिव को ही दी जा सकती है, किसी और को नहीं।
स्पष्टीकरण:
यहाँ “मान्यता प्राप्त सामाजिक कल्याण संस्था या संगठन” का मतलब है — ऐसा संगठन जिसे इस उद्देश्य के लिए केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा मान्यता मिली हो।
📜आसान भाषा मे : BNS Section 72 – कुछ अपराधों की पीड़िता की पहचान उजागर करने पर रोक
🔒 उपधारा (1): क्या मना है?
अगर कोई व्यक्ति:
- पीड़िता का नाम छापता या प्रकाशित करता है,
या - कोई ऐसा विवरण देता है जिससे पीड़िता की पहचान उजागर हो सकती है,
और यह पीड़िता ऐसे मामलों की है जो धारा 64 से लेकर 71 तक आते हैं (जैसे बलात्कार, यौन शोषण, पीछा करना, बदनीयती से कपड़े उतारना आदि),
तो उस व्यक्ति को:
➡️ दो साल तक की जेल हो सकती है
➡️ और जुर्माना भी लगेगा।
✅ उपधारा (2): पहचान बताना कब मुमकिन है?
कुछ ख़ास परिस्थितियों में पीड़िता की पहचान उजागर करना वैध माना गया है:
(a) अगर पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी या जांच कर रहा पुलिस अफसर ईमानदारी से जांच के मकसद से लिखित आदेश में पहचान उजागर करता है।
(b) अगर खुद पीड़िता ने लिखित रूप में इजाज़त दी है।
(c) अगर पीड़िता मर चुकी है, बच्ची है या मानसिक रूप से अक्षम है,
तो उसके निकट संबंधी (next of kin) लिखित इजाज़त दे सकते हैं।
लेकिन याद रखो:
🔸 यह इजाज़त सिर्फ मान्यता प्राप्त समाज कल्याण संस्था को ही दी जा सकती है, किसी और को नहीं।
🔸 और वह इजाज़त उस संस्था के अध्यक्ष या सचिव को ही दी जा सकती है।
📌 स्पष्टीकरण – ‘मान्यता प्राप्त संस्था’ क्या होती है?
ऐसी कोई भी सामाजिक संस्था जिसे केंद्र या राज्य सरकार ने औपचारिक मान्यता दी हो।
जैसे महिला कल्याण संस्था, NGO वगैरह।
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📋 BNS Section 72 – अपराध का सारांश (Particulars)
बिंदु | विवरण |
धारा | धारा 72 – भारतीय न्याय संहिता, 2023 |
अपराध | यौन अपराधों की पीड़िता की पहचान उजागर करना |
सज़ा | अधिकतम 2 साल की जेल और जुर्माना |
संज्ञेय/असंज्ञेय | संज्ञेय (Cognizable) |
जमानती/गैर-जमानती | जमानती (Bailable) |
विचारणीय अदालत | प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट |
समझौता योग्य/अयोग्य | समझौता अयोग्य (Non-compoundable) |
⚖️ पुराना कानून (IPC धारा 228A) जो इससे मेल खाता है
➡️ IPC की धारा 228A: यह भी बलात्कार या यौन अपराधों की पीड़िता की पहचान उजागर करने पर रोक लगाती थी।
🔄 तुलना – IPC 228A बनाम BNS 72
तुलना का बिंदु | IPC धारा 228A (पुराना कानून) | BNS धारा 72 (नया कानून) |
उद्देश्य | यौन अपराधों की पीड़िता की पहचान की रक्षा | वही उद्देश्य – पहचान की सुरक्षा |
किन अपराधों पर लागू | IPC 376, 376A-376E | BNS 64 से 71 (इनका समकक्ष) |
सज़ा | 2 साल तक की जेल और जुर्माना | वही सज़ा |
अपवाद | पुलिस जांच, पीड़िता या रिश्तेदार की इजाज़त | वही अपवाद + स्पष्ट परिभाषा |
संस्था की परिभाषा | स्पष्ट नहीं | सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्था |
❓ BNS Section 72 – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
Q1. क्या Section 72 BNS एक जमानती अपराध है?
✔️ हां, यह जमानती अपराध है। मतलब आरोपी को पुलिस या कोर्ट से जमानत मिल सकती है।
Q2. BNS की धारा 72 क्या कहती है?
📌 यह धारा कहती है कि अगर किसी महिला/बच्ची के साथ यौन अपराध (जैसे बलात्कार, छेड़छाड़, पीछा करना आदि) हुआ है,
तो उसकी पहचान बताना गैरकानूनी और दंडनीय है।
Q3. BNS का पूरा नाम क्या है और इसका मतलब क्या है?
🧾 BNS का मतलब है भारतीय न्याय संहिता, 2023।
यह नया भारतीय क्रिमिनल कानून है जो पुराने IPC को बदलकर आया है। इसमें भाषा आसान की गई है और पीड़िता-केंद्रित न्याय पर ज़ोर दिया गया है।
Q4. BNS की धारा 73 क्या है?
🪔 यह दहेज मृत्यु से जुड़ी है। अगर शादी के 7 साल के भीतर पत्नी की मौत संदिग्ध हालात में होती है और दहेज के लिए प्रताड़ना साबित होती है,
तो पति या उसके घरवालों को कम से कम 7 साल की जेल और अधिकतम उम्रकैद हो सकती है। (यह IPC की धारा 304B जैसा है)
Q5. अगर कोई यौन अपराध की पीड़िता की पहचान उजागर करे तो क्या सज़ा है?
➡️ Section 72 BNS के तहत, दो साल तक की कैद और जुर्माना।
ये कानून पीड़िता की गोपनीयता और सम्मान की रक्षा करता है।
