False Case in India: झूठे केस से बचने के कानूनी उपाय

False Case in India से बचना चाहते हैं? जानिए झूठे केस से बचने के कानूनी उपाय, जरूरी दस्तावेज और बचाव के लिए सही कानूनी तरीका।

In this present period, False Case in India  एक गंभीर सामाजिक और कानूनी समस्या बन चुका है। झूठे केस से कैसे बचा जा सकता है? यह न केवल न्यायालय का बहुमूल्य समय नष्ट करता है, बल्कि निर्दोष व्यक्तियों के जीवन, सम्मान, व्यवसाय और मानसिक शांति पर भी गहरा आघात करता है। Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS) 2023 ने इस समस्या को गंभीरता से लिया है और झूठे केस दायर करने तथा झूठा सबूत पेश करने के खिलाफ सख्त प्रावधान किए हैं।

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False Case in India

झूठा केस करने या झूठा सबूत देने से संबंधित BNS के प्रावधान

📚 झूठा केस करने से संबंधित : धारा 212, 216 का सारांश:

1. झूठी FIR देना (BNS धारा 212 False Information Furnishing)

यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को, जिसको वह कानूनी रूप से सही सूचना देने के लिए बाध्य है, जानबूझकर झूठी या भ्रामक सूचना देता है, तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 212 (BNS के अंतर्गत) के अंतर्गत दोषी होगा।
इसमें दो स्थिति शामिल हैं:

  • यदि दी गई झूठी सूचना सामान्य विषय से संबंधित है, तो दोषी को छह महीने तक के साधारण कारावास, या पाँच हजार रुपए तक के जुर्माने, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
  • यदि झूठी सूचना किसी अपराध के घटित होने, अपराध रोकने या अपराधी की गिरफ्तारी से संबंधित है, तो दोषी को दो वर्ष तक के कारावास, या जुर्माने, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

उदाहरण:

  • यदि कोई जमींदार हत्या की सच्ची जानकारी रखते हुए भी पुलिस को यह कहे कि मौत सांप के काटने से हुई है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी माना जाएगा।
  • यदि कोई चौकीदार डकैती की योजना बनाने वाले लोगों के बारे में जानते हुए भी पुलिस को गुमराह करने वाली जानकारी दे, तो वह भी इस अपराध के अंतर्गत आएगा।

2. शपथ पर झूठा बयान देना  (BNS धारा 216 False Statement on Oath)

यदि कोई व्यक्ति, जिसे कानून द्वारा किसी विषय पर शपथ या घोषणा के तहत सत्य बोलने के लिए बाध्य किया गया है, जानबूझकर झूठा बयान देता है, तो वह भी एक गंभीर अपराध करता है।
BNS की धारा 216 के तहत, ऐसा व्यक्ति:

  • तीन वर्ष तक के कारावास से दंडित किया जा सकता है, और
  • उस पर अर्थदंड (Fine) भी लगाया जा सकता है।

यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि न्यायिक कार्यवाहियों में सत्य और निष्ठा का पालन अनिवार्य रूप से हो, तथा झूठे बयानों से न्याय प्रक्रिया को प्रभावित न किया जा सके।

📚 झूठा सबूत देने से संबंधित धारा 227 से 232  का सारांश:

🔹 धारा 227  – झूठा साक्ष्य देना
यदि कोई व्यक्ति, जिसे सत्य बोलने की कानूनी जिम्मेदारी है (जैसे शपथ लेकर), जानबूझकर झूठा बयान देता है या वह बयान देता है जिसमें उसे स्वयं विश्वास नहीं है, तो यह “झूठा साक्ष्य देना” कहलाता है।

🔹 धारा 228  – झूठा साक्ष्य गढ़ना
यदि कोई जानबूझकर नकली दस्तावेज बनाता है, फर्जी एंट्री करता है, या झूठी स्थिति निर्मित करता है ताकि न्यायिक कार्यवाही में दूसरों को गुमराह किया जा सके, तो इसे “झूठा साक्ष्य गढ़ना” कहते हैं।

🔹 धारा 229  – झूठा साक्ष्य देने या तैयार करने की सज़ा

  • न्यायिक कार्यवाही में झूठा साक्ष्य देने पर अधिकतम 7 साल का कारावास और 10,000 रुपये तक जुर्माना
  • अन्य मामलों में अधिकतम 3 साल का कारावास और 5,000 रुपये तक जुर्माना

🔹 धारा 230  – फांसी दिलाने के लिए झूठा साक्ष्य देना या बनाना
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर झूठा साक्ष्य देता है ताकि किसी को मृत्युदंड योग्य अपराध में दोषी ठहराया जाए:

  • आजीवन कारावास या अधिकतम 10 वर्ष का कठोर कारावास और 50,000 रुपये तक जुर्माना
  • यदि झूठे साक्ष्य के चलते निर्दोष व्यक्ति को फांसी हो जाती है, तो दोषी को मृत्युदंड या आजीवन कारावास दिया जा सकता है।

🔹 धारा 231  – गंभीर अपराधों में फंसाने के लिए झूठा साक्ष्य देना या बनाना
यदि कोई व्यक्ति झूठा साक्ष्य देता है ताकि किसी को 7 साल से अधिक सजा या आजीवन कारावास वाले अपराध में फंसाया जाए, तो उसे वही सजा दी जाएगी जो असली अपराध के लिए निर्धारित है।

🔹 धारा 232  – झूठा साक्ष्य देने के लिए धमकाना
यदि कोई व्यक्ति किसी को शारीरिक क्षति, बदनामी या संपत्ति नुकसान की धमकी देकर झूठा बयान देने को मजबूर करता है:

  • अधिकतम 7 साल का कारावास, जुर्माना या दोनों।
  • यदि धमकी के कारण निर्दोष को मृत्यु दंड या 7 साल से अधिक सजा मिलती है, तो धमकी देने वाले को भी वही सजा दी जाएगी।

धारा अनुसार अपराध और सजा का सारांश (Table)

धारा संख्याअपराधदंड
227 झूठा साक्ष्य देना– न्यायिक कार्यवाही में: 7 साल तक कारावास और जुर्माना- अन्य मामलों में: 3 साल तक कारावास और जुर्माना
228 झूठा साक्ष्य गढ़नाधारा 225 के अनुसार दंड
229 झूठा साक्ष्य देने या गढ़ने के लिए दंडधारा 225 के अनुसार दंड
230 फांसी योग्य अपराध में दोषसिद्धि के लिए झूठा साक्ष्य देना या गढ़ना– आजीवन कारावास या 10 साल का कठोर कारावास और जुर्माना- निर्दोष को फांसी होने पर मृत्युदंड
231 गंभीर अपराध में फंसाने के लिए झूठा साक्ष्य देना या गढ़नाअसली अपराध के समान दंड
232 झूठा साक्ष्य देने के लिए धमकाना– 7 साल तक कारावास या जुर्माना या दोनों- यदि गंभीर परिणाम हुआ तो वही सजा जो निर्दोष को मिली

झूठे केस से बचने के लिए सबसे पहले क्या करें?

जब भी आपको लगे कि आपके खिलाफ झूठे केस की आशंका है या कोई व्यक्ति झूठा आरोप लगाने की कोशिश कर रहा है, तो सबसे पहले शांत और सतर्क रहें। जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम न उठाएं जो बाद में आपके खिलाफ सबूत बन जाए। अपने पूरे घटनाक्रम का एक स्पष्ट विवरण लिखित में तैयार करें और उसे सुरक्षित रखें। विश्वसनीय गवाहों से संपर्क करें और अपनी स्थिति स्पष्ट करें। साथ ही, जल्द से जल्द एक योग्य वकील से सलाह लें ताकि प्रारंभिक स्तर पर सही कानूनी रणनीति तैयार की जा सके। यदि आवश्यक हो, तो anticipatory bail यानी अग्रिम जमानत के लिए भी आवेदन किया जा सकता है।


झूठे केस से बचाव के लिए जरूरी दस्तावेज और सबूत कौनसे हैं?

झूठे केस से बचने में सबसे बड़ा सहारा मजबूत दस्तावेजी प्रमाण और सबूत होते हैं। आपके पास मौजूद सभी जरूरी दस्तावेज, जैसे कि बातचीत के रिकॉर्ड (WhatsApp, SMS, ईमेल), गवाहों के बयान, सीसीटीवी फुटेज, कॉल रिकॉर्डिंग, स्थान संबंधी साक्ष्य (Location Evidence) आदि को सुरक्षित रखें। घटना से संबंधित किसी भी प्रकार का लिखित प्रमाण या दस्तावेज कोर्ट में आपके पक्ष को मजबूत कर सकता है। इसके अलावा, यदि संभव हो तो किसी नोटरी अथवा वकील के माध्यम से अपनी सफाई या घटनाक्रम का एक सत्यापित affidavit तैयार कराना भी लाभकारी रहता है। याद रखें, न्यायालय में सबूत सबसे बड़ी ताकत होती है।

Practical examples 

WhatsApp चैट को कोर्ट में कैसे पेश करें?

अगर आपको अपने बचाव में WhatsApp चैट को बतौर सबूत पेश करना है, तो उसका सही तरीके से प्रमाणित होना आवश्यक है। इसके लिए चैट्स का स्क्रीनशॉट लेकर या चैट्स को ईमेल के माध्यम से सेव कर लें। फिर भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक सबूत के प्रमाणन के लिए Section 65B के तहत एक Certificate तैयार कराना जरूरी है। इस सर्टिफिकेट में बताया जाएगा कि यह चैट्स किस डिवाइस से, कब और कैसे प्राप्त की गईं। बिना Section 65B Certificate के WhatsApp चैट कोर्ट में स्वीकार्य नहीं मानी जाती।


सीसीटीवी फुटेज को कोर्ट में स्वीकार्य बनाने के लिए क्या करना चाहिए?

सीसीटीवी फुटेज को सबूत के रूप में स्वीकार करवाने के लिए यह साबित करना जरूरी होता है कि फुटेज असली है और किसी प्रकार से छेड़छाड़ नहीं की गई है। सबसे पहले मूल डिवाइस (DVR/NVR) को सुरक्षित रखें और फुटेज की एक क्लोन कॉपी तैयार करें। इसके बाद, Section 65B के तहत एक इलेक्ट्रॉनिक प्रमाण पत्र (Certificate) तैयार करें जिसमें यह विवरण हो कि किस डिवाइस से फुटेज निकाली गई और उसे कैसे संरक्षित किया गया। साथ ही, यदि संभव हो तो फुटेज लेने वाले व्यक्ति या तकनीकी विशेषज्ञ से कोर्ट में गवाही भी कराई जा सकती है ताकि फुटेज की प्रामाणिकता को मजबूत किया जा सके।


Tip:
अगर आप इन दोनों बातों को सही तरीके से निभाएंगे तो आपके सबूत कोर्ट में मजबूत स्थिति में पेश होंगे और झूठे केस से बचाव करना कहीं ज्यादा आसान हो जाएगा।

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झूठे केस से बचाव के लिए कानूनी उपाय क्या है ? 

झूठे केस से बचाव के लिए निचे दिए गए उपाय आप कर सकते है : 

1. प्राथमिकी (FIR) रद्द कराने के लिए याचिका दाखिल करना

यदि आपके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी पूरी तरह से झूठी, मनगढ़ंत या अपराध घटित न होने पर आधारित है, तो आप BNSS की धारा 528 के तहत उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर सकते हैं।
अदालत यह देखती है कि मामले मे प्रथम दृष्टया (prima facie)अपराध नहीं बनता अथवा विधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा है, तो वह FIR को रद्द कर सकती है।

2. अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) का आवेदन

यदि आपको गिरफ्तारी की आशंका है, तो आप अग्रिम जमानत के लिए सक्षम न्यायालय में आवेदन कर सकते हैं।
अग्रिम जमानत मिलने पर पुलिस आपको गिरफ्तार नहीं कर सकती, जब तक कि न्यायालय की शर्तों का पालन किया जाता रहे।
यह उपाय झूठे मामलों में गिरफ्तारी से बचाव के लिए अत्यंत प्रभावी है।

3. काउंटर केस (प्रतिवाद) दायर करना

अगर किसी व्यक्ति ने जानबूझकर आपके खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराया है, तो आप भी उसके विरुद्ध विभिन्न धाराओं के तहत काउंटर केस दर्ज करा सकते हैं, जैसे:

  • झूठी शिकायत दर्ज कराना (भारतीय दंड संहिता की धारा 182/ भारतीय न्याय संहिता (BNS) धारा 212 )
  • झूठा साक्ष्य प्रस्तुत करना (धारा 229)
  • दुर्भावनापूर्ण अभियोजन (Malicious Prosecution) का दावा करना

यह आपके सम्मान की रक्षा करता है और झूठे आरोप लगाने वाले को दंडित करने का मार्ग प्रदान करता है।

4. मानहानि का वाद (Defamation Suit)

यदि झूठे आरोपों के कारण आपकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा है, तो आप झूठे आरोप लगाने वाले के विरुद्ध:

  • दीवानी मानहानि वाद (Civil Defamation Suit) और/या
  • आपराधिक मानहानि वाद (Criminal Defamation under BNS Section 356)
    दायर कर सकते हैं।
    इसके माध्यम से आप क्षतिपूर्ति की मांग कर सकते हैं और आरोपी के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई भी कर सकते हैं।

5. संविधानिक अधिकारों का संरक्षण

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत हर व्यक्ति को न्यायोचित प्रक्रिया का अधिकार प्राप्त है।
यदि आपको झूठे मामले में परेशान किया जा रहा है, तो आप उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में रिट याचिका (जैसे – बंदी प्रत्यक्षीकरण, संरक्षण याचिका, आदि) भी दाखिल कर सकते हैं।


झूठे केस से हुए नुकसान की भरपाई कैसे करें?

यदि आपके खिलाफ झूठा केस दायर किया गया है, तो आप निम्न तरीकों से क्षतिपूर्ति (Compensation) प्राप्त कर सकते हैं:

🔹 Defamation Suit (मानहानि का मुकदमा):
BNS की धारा 500 (पूर्व IPC 500) के तहत मानहानि के लिए मुकदमा कर सकते हैं।

🔹 Malicious Prosecution Claim (दुर्भावनापूर्ण अभियोजन का दावा):
यदि कोर्ट में साबित होता है कि मुकदमा दुर्भावनापूर्ण था, तो आप विशेष क्षतिपूर्ति (Special Damages) मांग सकते हैं।

🔹 Tort Law Remedy:
सिविल कोर्ट में “civil suit” दाखिल कर monetary compensation के लिए दावा कर सकते हैं।

उदाहरण:
यदि कोई जानबूझकर झूठा छेड़छाड़ का केस दायर करता है और पुलिस जांच में सच्चाई सामने आती है, तो आरोपी व्यक्ति मानहानि और मानसिक प्रताड़ना के लिए मुआवजा मांग सकता है।


झूठे केस पर कानूनी खर्च की वसूली कैसे करें?

🔹 Court Fees + Lawyer Fees Recovery:
Counter-claim के माध्यम से actual legal expenses की भरपाई की मांग कर सकते हैं।

🔹 Criminal Complaint:
अगर झूठा केस आपराधिक इरादे से किया गया है, तो BNS धारा 228 के तहत नई शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

🔹 Specific Court Orders:
कई बार कोर्ट स्वयं CrPC की धारा 250 और 357 के तहत Compensation Award करती आई है।


वकील की सलाह कब लेना जरूरी है?

  • Summon या Notice मिलते ही वकील से सलाह लें।
  • यदि FIR या Complaint में झूठे तथ्य दिखें, तो तुरंत लीगल सलाह लें।
  • Settlement या Compromise के प्रस्ताव पर वकील से Guidance लेना अनिवार्य है।

🔵 “Legal Advice Early लेने से आपके केस में जीतने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।”


झूठा केस से जुड़े Supreme Court और High Court निर्णय

  1. Kamala Devi vs State of Haryana (2020 SCC Online SC 428)
    कोर्ट ने झूठे आरोप लगाने वालों के खिलाफ कठोर कदम उठाए और Compensation Award किया। झूठे मुकदमे से सामाजिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाने पर सख्त टिप्पणी की।
  2. Subrata Roy Sahara vs Union of India (2014) 8 SCC 470
    सुप्रीम कोर्ट ने झूठे दस्तावेज और गलत बयानी के मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन माना और झूठी कार्रवाई को कानून के खिलाफ करार दिया।
  3. Ravinder Kumar Sharma vs State of Punjab (2022 SCC Online P&H 1037)
    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने False Prosecution मामलों में Compensation Award करने का आदेश दिया और कहा कि झूठे मुकदमे न्याय व्यवस्था का दुरुपयोग हैं।
  4. Perumal v. Janaki (2014)
    सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक प्रणाली की गरिमा को बचाए रखने के लिए झूठे मुकदमे और फर्जी साक्ष्य के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता बताई।
  5. K. Karunakaran v. T.V. Eachara Warrier (1978)
    कोर्ट ने झूठे साक्ष्य के आधार पर सजा पाए व्यक्ति को न्याय दिलाया और दोषी को दंडित किया।

झूठा केस से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)


Q. कोई झूठा केस करे तो क्या करें?
👉 यदि आपके खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज किया गया है, तो आप उच्च न्यायालय में धारा 528 बीएनएस के तहत FIR रद्द कराने के लिए याचिका दायर कर सकते हैं, एंटीसिपेटरी बेल ले सकते हैं, काउंटर केस कर सकते हैं या मानहानि का मुकदमा भी कर सकते हैं।


Q. झूठे केस में कौन सी धारा लगती है?
👉 झूठे केस दर्ज कराने पर बीएनएस की धारा 227 के तहत कार्यवाही होती है, जिसमें झूठी सूचना देने या झूठा आरोप लगाने पर सजा का प्रावधान है।


Q. बीएनएस की धारा 227 क्या है?
👉 बीएनएस की धारा 227 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति झूठा आरोप लगाकर किसी को आपराधिक दंड दिलवाने का प्रयास करता है, तो उसे सात वर्ष तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है।


Q. झूठी शिकायत देने पर क्या सजा होती है?
👉 झूठी शिकायत देने पर बीएनएस की धारा 227 और 212 के तहत कार्रवाई हो सकती है, जिसमें दो वर्ष से लेकर सात वर्ष तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।


Q. झूठे मुकदमे में बेल कैसे लें?
A. आप सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट में एंटीसिपेटरी बेल या रेगुलर बेल के लिए आवेदन कर सकते हैं।


Q. FIR रद्द कराने की प्रक्रिया क्या है?
A. झूठी FIR को रद्द कराने के लिए आप हाई कोर्ट में धारा 528 BNS के तहत याचिका दायर कर सकते हैं।


Q. झूठी शिकायत पर पुलिस क्या कार्रवाई करती है?
A. जांच के बाद पुलिस झूठी शिकायत को बंद कर सकती है और गलत शिकायतकर्ता पर IPC या BNS के तहत कार्रवाई कर सकती है।

Q. झूठे केस में क्या तुरंत Arrest हो सकता है?
A. नहीं, झूठे केस में तुरंत गिरफ्तारी नहीं होती। पुलिस या कोर्ट साक्ष्य की जांच कर सही तथ्यों के आधार पर ही गिरफ्तारी का आदेश देती है।


Q. झूठे केस में खुद को कैसे बचाएं?
A. वकील से तुरंत सलाह लें, अपनी बेगुनाही के सबूत इकट्ठा करें, FIR रद्द कराने के लिए हाई कोर्ट में धारा 528 BNS के तहत याचिका दायर करें और एंटीसिपेटरी बेल लें।


Q. झूठे केस में सजा किस आधार पर तय होती है?
A. सजा आरोपी की मंशा (Mens Rea), झूठ के प्रभाव, समाज पर पड़े असर और कोर्ट में पेश सबूतों के आधार पर तय होती है।


Q. झूठे मुकदमे के लिए क्या सजा है?
A. BNS धारा 229 के तहत झूठा मुकदमा दर्ज कराने पर 7 साल तक की जेल और ₹10,000 तक का जुर्माना हो सकता है।


Q. फर्जी सबूत देने पर क्या होता है?
A. अगर कोई जानबूझकर फर्जी सबूत देता है, तो BNS धारा 227 के तहत 7 साल तक की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है।


✨ Conclusion:

भारत में झूठे केस दायर करना अब गंभीर अपराध बन चुका है।
BNS 2023 के तहत झूठे केस या फर्जी सबूत देने पर कठोर सजा का प्रावधान किया गया है।
यदि आप किसी झूठे मुकदमे का सामना कर रहे हैं, तो सही कानूनी मार्गदर्शन लेना और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना अत्यंत आवश्यक है।

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